समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के गठबंधन के बाद भी उन पर ऐसे तीर तरक्श नहीं छोड़ रही जैसे राहुल गांधी पर छोड़े जा रहे हैं. जिन्हें पहले जातिवादी और विभाजक कह कह कर गालियां दी जाती थीं उन पर भाजपा की औल फौज चुप हैं. रातदिन केवल राहुल गांधी और सोनिया गांधी का माखौल उड़ाने की कोशिश हो रही है. हालांकि यह कोशिशें अब अपने ही खिसकते समर्थकों को बचाने के लिए हैं. दूसरों को भाजपा में लाने के लिए नहीं.
मायावती और अखिलेश का प्रभाव केवल उत्तर प्रदेश में है. दलित होने के कारण दूसरे राज्यों में मायावती इक्कीदुक्की विधायकों की या कारपोरेशनों वालों में 5-7 वार्डों में जीत जाती हैं पर बाकि दलितों में कोई गहरी पैठ नहीं बना पाई. अन्य राज्यों में या तो राज्य तक सीमित पार्टी में दलित है या फिर कांग्रेस में.
उत्तर प्रदेश में दम ठोकने वाली समाजवादी पार्टी का भी यही हाल है. मुलायम सिंह ने कभी इसे उत्तर प्रदेश से बाहर नहीं फैलाया और उन का पिछड़ा समर्थन कई राज्यों में कांग्रेस के साथ है तो कई राज्यों में किसी स्थानीय पार्टी के साथ.
उत्तर प्रदेश अकेला राज्य है जहां दलितों व पिछड़ों की पार्टियां और दोनों ने कईकई बार राज भी किया है. कांगे्रस को सत्ता में या उस के करीब भी आए अरसे हो चुका है.
मायावती और अखिलेश यादव के खिलाफ मोर्चा न खोलना भाजपा के लिए एक संकट पैदा करेगा क्योंकि 80 सीटों पर मुख्य मुकाबला तो उन्हीं से है और उन्हीं से बाद में मिलना न पड़े. इसलिए उन पर न जाए यह संभव नहीं है.