सरकारी अस्पतालों में लापरवाही हद से ज्यादा हो रही है, सरकारी रेलों की एक के बाद एक दुर्घटनाएं हो रही हैं, सरकार का टैक्स जमा करने वाला कंप्यूटर सिस्टम रोज फेल हो रहा है, सड़कों पर लालबत्तियां अकसर काम नहीं करतीं, नालों में सफाई में सैकड़ों की मौतें होती हैं, सरकारी अदालतों में वर्षों मामले सड़ते रहते हैं, देश की नदियां नाले बनी हुई हैं, जरा सी ज्यादा बारिश होती है तो मुंबई जैसा शहर डूब जाता है, सरकारी गोदामों में अनाज चूहे खाते हैं और लोग भूखे रहते हैं और हम सरकार के गुणगान करते रहते हैं.

सरकार किसी भी पार्टी की हो, हाल सारे देश का एकजैसा है. आम आदमी सरकार के निकम्मेपन का शिकार है, रोज झटके पर झटके खाता है, पर कुछ कर नहीं सकता. वह वोट से सरकार बदल ले तो क्या, नई सरकार उसी ढर्रे पर चलना शुरू कर देती है.

सरकार अपनी कमजोरियों के लिए किसी को दोषी नहीं ठहराती. कभी कोई मंत्री, कोई अफसर, कोई बाबू अपनी नौकरी नहीं खोता. सरकार कुछ गलत करे तो सब माफ, पर आम आदमी गलती से भी कुछ कर बैठे, तो जेल में बंद हो जाए.

निजी अस्पताल में मौतें हो जाएं, तो अदालतों में मामले चलने लगते हैं. सरकारी अस्पतालों में हों तो कुछ नहीं होता. निजी बस चालक को ही नहीं, मालिक को भी दुर्घटना के लिए जेल में भेज दिया जाता है. रेल दुर्घटना पर कोई जिम्मेदार नहीं.

सरकार कोई गलत कर दे तो कोई गुनाह नहीं, यह सोच असल में हमारी अफरातफरी के लिए जिम्मेदार है. अगर हर सरकारी नौकर को एहसास हो कि वह अपने वेतन व सुविधाओं के लिए नहीं, अपनी सेवा करने की काबिलीयत पर रखा गया है, तो उस का काम दूसरे ढंग का होगा.

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