भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ सदस्यों यशवंत सिन्हा, अरुण सिन्हा और शत्रुघ्न सिन्हा के तीखे बयानों के बाद नरेंद्र मोदी ने अपने बचाव में, अपना पक्ष रखने के लिए जनता की अदालत में आंकड़ों का ढेर, कंपनी सैक्रेटरियों की एक सभा में पेश किया. भाषण लंबा था, बहुत से आंकड़े स्क्रीन पर थे, नए तरह के वादे थे पर वे सुलगती आग को ठंडा कर पाएंगे, इस में संदेह है.
किसी प्रधानमंत्री को यह हक नहीं कि 3 साल राज करने के बाद वह पिछले 70 सालों, 10 सालों या अपने से पहले के 2-3 सालों के आंकड़ों के सहारे अपने लिए गोरखपुरी औक्सीजन को ढूंढ़ने की कोशिश करे. मनमोहन सिंह की सरकार के खिलाफ जनता थी तभी तो नरेंद्र मोदी को भारी सफलता मिली. जनता को मोदी से बहुत उम्मीदें हैं.
उन उम्मीदों को पूरा न करने की जगह यह कहना कि पिछली सरकार कौन सी अच्छी थी, बेबुनियाद है. आज जनता एक तरफ आर्थिक समस्याओं से जूझ रही है तो दूसरी तरफ देशभर में फैल रही दहशत, गुंडागर्दी, गालीगलौज और विरोधी को मार डाले जाने के वातावरण को झेल रही है. ये दोनों प्राकृतिक आपदाएं नहीं हैं, ये दोनों 2014 में बनी सरकार की नई देन हैं.
जनता ठगा महसूस कर रही है कि वह भ्रष्ट सरकार से मुक्त हुई या नहीं. उसे तो अपने ऊपर हर रोज हावी होती और उस के हाथ बांधती सरकार नजर आ रही है. कंपनी सैक्रेटरियों से नरेंद्र मोदी ने इस तरह का कुछ नहीं कहा जो आम जनता को राहत दे सके. हां, जिन कंपनियों में उन के श्रोता सैक्रेटरी हैं, कंपनी कानून की बाध्यता के कारण उन कंपनियों के आंकड़े अच्छे हैं क्योंकि यह दिख रहा है कि पैसा आम छोटे, बहुत छोटे और पटरी वाले व्यापारियों के हाथों से निकल कर मोटी धन्ना सेठ कंपनियों के हाथों में जा रहा है.
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