इस माता की जय बोलो या उस माता की. नहीं बोलोगे तो सिर फोड़ देंगे, यह शिक्षा दी जा रही है आज युवाओं और किशोरों को, उन के द्वारा जो संस्कृति, समाज, संस्कारों और सरकार के ठेकेदार हैं. आज का किशोर भ्रम में है. ये माताएं आई कहां से? उस किशोर के घर में जो मां है, वह ही तो उस का केंद्र है. वह उस के खाने का खयाल रखती है. पढ़ाई पर ध्यान देती है. उसे घुमाने ले जाती है. 2 घंटे न दिखे तो लगता है जीवन अधूरा रह गया. उस मां की जय न बोलो तो समाज के ठेकेदारों को कोई फर्क नहीं पड़ता पर उस मां जो है ही नहीं, दिखती नहीं, कुछ करती नहीं, बचाती नहीं, खाना नहीं देती, सुख नहीं देती, के पीछे इतना हल्ला?
क्या जय माता वाली ने कभी कुछ दिया है? लाखों लोग सर्दी में ठिठुरते हुए, गरमी में झुलसते हुए नारे लगाते इस मंदिर या उस जुलूस में गला बैठाते रहते हैं, पर मिलता क्या है? उन के चेहरे तो देखो? ज्यादा के मुरझाए हुए. कपड़े देखो, फटे हुए. खाना देखो, मैले रूमाल में बंधा हुआ या गंदगी के ढेर के बराबर लगे खोमचे से. गरीब घर की मां भी उस से कहीं ज्यादा प्यार से खिलाती है पर उस अपनी मां की जय न बोलने पर आप देशद्रोही नहीं बनते. घरद्रोही भी नहीं बनते. वह मां जो जिंदा है, घर चला रही है, कमा रही है, अगर परेशान है अपने बेटेबेटियों से या उन के पिता से तो उस की तरफदारी वाले कहां हैं?