कुआलालंपुर से बीजिंग जाने वाली फ्लाइट एमएच 370 का लापता हो जाना उस की दुर्घटना से ज्यादा दर्दनाक रहा है. 12-15 दिन तक जब हवाईजहाज का पता न चला तो यह पक्का था कि सभी पर्यटक मारे गए हैं पर यह आश्चर्य रहा कि ऐसे समय जब एक आम आदमी को भी मोबाइल नैटवर्क की सहायता से भीड़ में से खोजा जा सकता है तो रडारों, सैटेलाइट संपर्कों के बावजूद इस भारीभरकम 777 बोइंग को क्यों नहीं ढूंढ़ा जा सका?
यह तो 10-12 दिनों में पक्का हो गया था कि हवाई जहाज अपने नियत फ्लाइट रूट से अलग हो कर कहीं गया पर उस के रेडियो कौंटैक्ट क्यों बंद किए गए और वह कैसे जगहजगह लगे रडारों से बचता हुआ निकल गया?
अगर यह हवाई जहाज गहरे समुद्र में गिरा है तो शायद उसे वर्षों तक ढूंढ़ा न जा सके. 10 हजार फुट की गहराई के समुद्र में किसी हवाई जहाज को ढूंढ़ना भूसे में सूई को ढूंढ़ने से भी कठिन है. वहां पानी का दबाव इतना अधिक होता है कि उसे खोजना असंभव होता है.
कठिनाई यह भी रही कि यात्रियों और चालक दल की पारिवारिक जांचपड़ताल पर भी कुछ ऐसा न मिला जिस से कहा जा सके कि यह अपहरण की साजिश थी. कुछ लोग जाली पासपोर्ट पर जरूर थे पर उन की पृष्ठभूमि ऐसी नहीं निकली कि उन को शक के घेरे में लिया जा सके.
हवाई यात्रा आज बेहद सुरक्षित है और कुछ मामलों में सड़क दुर्घटनाएं ज्यादा होती हैं. ऐसे में एक विशाल हवाई जहाज का खो जाना वर्षों तक पहेली बना रहेगा. यह संतोष की बात है कि इस खोज में दुनिया के सारे देश एकसाथ काम करने लगे और मलयेशिया सरकार या मलयेशियाई हवाई कंपनी को कोसा कम गया.