गुजरात ही वह राज्य रहा है, जहां विकास की नहीं दलितों पर होने वाले जुल्मों की कहानियां लिखी जा रही हैं. दलितों के साथ गुजरात में सदियों से बुरा बरताव होता रहा है और तभी वहां बहुत समय तक अछूत लोग इसलाम को अपनाते रहे. चाहे धर्म बदलने के बाद भी उन का काम न बदला हो, पर चूंकि गुजरात लंबे समय तक मुसलिम शासकों के हाथों में था, वे अपनेआप को थोड़ा बचे रहना समझते थे. यह उन की भूल थी, क्योंकि मराठों का राज आने के बाद हालात फिर वैसे ही हो गए और अंगरेजों के समय सुधरे नहीं. महात्मा गांधी का हरिजन प्यार भी दलितों को कोई खास जगह नहीं दिला सका. हिंदू जनता को खुश करने के लिए अकसर ये दलित ही मुसलिमों के साथ झगड़ा करते थे, पर पौराणिक हिंदू की सोच सदियों से नहीं बदली. ऊना में दलित युवकों के साथ जो हुआ, वह हिंदू पौराणिक सोच के हिसाब से उन के पापों का फल है.
भारतीय जनता पार्टी और उस से पहले कांग्रेस भी दलितों को दूर ही रखती रही है. अब चूंकि गौरक्षा का हथियार मिल गया है, दलितों की फटकार का बहाना मिल गया है, क्योंकि हिंदू मानी जाने वाली कुछ दलित जातियां ही चमड़े का काम करती हैं. यह अब भाजपा को महंगा पड़ सकता?है. एक तरफ पाटीदार समझने लगे हैं कि कट्टर हिंदुओं के लिए केवल ब्राह्मण, क्षत्रिय व वैश्य हिंदू हैं, पिछड़े, किसान, पटेल नहीं. वहीं दूसरी तरफ दलितों को अब समझ आ गया है कि सदियों से उन का इस्तेमाल हो रहा है, मुसलिमों व दूसरों से झगड़ा करने में. 2002 के दंगों में मारपीट में ऊंची जातियां आगे नहीं थीं, उन्होंने तो अपने से नीचों को भड़काया था.