मैडिकल शिक्षा में सुधार और उस में व्याप्त भयंकर भ्रष्टाचार को खत्म करने के नाम पर नरेंद्र मोदी सरकार मैडिकल काउंसिल औफ इंडिया की जगह मैडिकल कमीशन जैसी संस्था बनाने की तैयारी में है. इस बारे में प्राप्त 9 हजार सुझावों में से ज्यादातर चाहे निरर्थक से ही थे, सरकार अब इस बात पर उलझी है कि डाक्टरों द्वारा मतदान के जरिए बनी वर्तमान मैडिकल काउंसिल की जगह सरकारी सिफारिशों पर बने आयोग के सदस्यों के हाथों में चिकित्सा शिक्षा दे दी जाएगी.
यह इलाज ऐसा है जैसे डेंगू पीडि़त को अस्पताल के ही मच्छरों से भरे कमरे में बैठा दिया जाए और कहा जाए कि कमरे के मच्छर क्योंकि अस्पताल के अपने हैं, वे मरीज को ठीक कर देंगे.
अभी तक जो संकेत मिले हैं उन से नहीं लगता कि इस शिक्षा में कोई आमूलचूल बदलाव होगा और मैडिकल कालेज खोलने, पाठ्यक्रम निर्धारित करने, परीक्षाएं लेने, प्रवेश परीक्षा आयोजित करने में कोई विशेष परिवर्तन होगा. बस, इतना असर होगा कि पहले मैडिकल काउंसिल के सदस्य चुनावों में सिर खपाते थे, अब सरकारी नेताओं और अफसरों के जूते साफ करेंगे. कोई और परिवर्तन होगा इस के आसार नहीं हैं.
मैडिकल कालेजों में प्रवेश प्रक्रिया बहुत ही उलझी और विवादों से घिरी रही है. दशकों से डाक्टर बनने के इच्छुक युवाओं की संख्या मैडिकल कालेजों में उपलब्ध सीटों से कहीं ज्यादा है. मेधावी छात्र न केवल पूरेपूरे साल किताबों में सिर खपाए रहते हैं, बल्कि बीसियों तरह की कोचिंग कक्षाएं लेते हैं कि उन्हें मैडिकल कालेज में जगह मिल जाए. पहले कई दशक तक तो सरकार मैडिकल शिक्षा पर कुंडली मारे बैठी रही और चाहे फीस कम थी पर नए कालेज भी पर्याप्त संख्या में नहीं खोले. जब निजीकरण किया गया, सैकड़ों कालेज तो खुले पर उन में प्रवेश हेतु मोटा पैसा लिया जाने लगा और फीस कई गुना बढ़ गई, क्योंकि मैडिकल शिक्षा वास्तव में बहुत खर्चीली है. फिर भी छात्रों की संख्या कम नहीं हुई, क्योंकि देश में आज भी साधारण योग्य डाक्टरों की भारी कमी है, विशेषज्ञों की तो बात छोडि़ए.
यह नया मैडिकल आयोग मूल समस्या, कालेजों में सीटें बढ़वाने पर कुछ कर पाएगा इस में संदेह है. यह मानक तय करने के नाम पर उसी तरह से भ्रष्ट खान बना रहेगा जैसी मैडिकल काउंसिल पहले रही थी, क्योंकि लेबल बदलने से दवा नहीं बदलती. मैडिकल शिक्षा भारत को हर स्तर की चाहिए, घटिया भी, बढि़या भी पर यह काउंसिल या आयोग सब को एकजैसी शिक्षा देने का आदेश देगा जो संभव नहीं है, क्योंकि सभी छात्र और सभी शिक्षक एकजैसे नहीं हो सकते. वर्तमान मैडिकल काउंसिल में भयंकर भ्रष्टाचार है, अरबों रुपए का लेनदेन कालेजों को मान्यता देने में होता है, इंस्पैक्शन रिपोर्टें सही नहीं होतीं, पाठ्यक्रम बिखरा होता है, फीस पर नियंत्रण नहीं है. यही कारण है कि बीमार देश में हर तरह की बीमारी बुरी तरह बढ़ रही है और आमतौर पर मरीज या तो भटकते रहते हैं या फिर जेब खाली कराते रहते हैं. सरकारी दवा केवल मैडिकल शिक्षा और मैडिकल उद्योग को लोकतांत्रिक शिकंजे से निकाल कर अफसरिया शिकंजे में डाल देगी.