नरेंद्र मोदी के दरवाजे पर जिस तरह अपेक्षाओं के ढेर लग रहे हैं उन से वे घबरा जाएं तो आश्चर्य नहीं. आज देश में जिसे देखो वह नरेंद्र मोदी द्वारा लाए गए राजनीतिक बदलाव के साथ आर्थिक, प्रशासनिक, औद्योगिक व व्यावहारिक परिवर्तनों की आशा कर रहा है. ये सारी आशाएं केवल नरेंद्र मोदी पर टिकी हैं.
पिछली सरकारों ने आम भारतीय को बुरी तरह ठगा है. देश में गरीबों और जातियों के नाम पर सरकारें बनती रही हैं पर न गरीबों को राहत मिली न जातियों को. ऊंचे वर्गों के लिए जो आर्थिक उन्नति पिछले दशकों में हुई है उस के लिए कोई भी किसी भी पार्टी को श्रेय देने को तैयार नहीं है पर जो भी भूलें हुईं, जो भी कमी रह गई उस के लिए तब की सत्तारूढ़ पार्टियों को तारकोल से रंगा जा रहा है.
पिछले 3 दशकों के दौरान देश में बहुत बदलाव आए हैं. चौड़ी सड़कें बनीं, ऊंचे भवन बने. मैक्डौनल्ड रेस्तरां और पिज्जा हट गलीगली खुल गए. प्याऊ की जगह पानी बोतलों में पिया जाने लगा, बहुमंजिले स्कूल और मैनेजमैंट कालेजों की भरमार हो गई, सड़कों पर जापान, जरमनी की गाडि़यां दौड़ रही हैं पर किसी से कोई प्रशंसा के दो बोल नहीं बोल रहा. जो बोल रहा है, वह शिकायत कर रहा है उस मुफ्तखोर बराती की तरह जो दाल में ज्यादा घी और खीर में ज्यादा क्रीम की शिकायत करता फिर रहा हो. इन शिकायतखोरों ने मिल कर अब नई सरकार को बनाया है.
नरेंद्र मोदी ने अच्छी सरकार और अच्छे दिनों का वादा किया है और इसीलिए अब अखबारों के पन्ने नरेंद्र मोदी के लिए किए जाने वाले कामों की लिस्टों से भर गए हैं. गंभीर बात यह है कि ये सूचियां आम गरीब या गरीब से जरा ज्यादा बेहतर व्यक्ति नहीं बना रहे. ये सूचियां वे लोग बना रहे हैं जो 30 साल से अपना जम कर जीवन सुधार कर रहे थे. इन में बड़े उद्योगपति व व्यापारी या उन के साथ के सफल वकील, डाक्टर, इंजीनियर, प्रोफैशनल, विदेशी भारतीय, विदेशी नियोजक ही शामिल हैं.