काले धन की समस्या से निबटने के लिए नरेंद्र मोदी ने अपने मंत्रिमंडल की पहली बैठक में विशेष जांच टीम का गठन किया है जिस के अध्यक्ष सर्वोच्च न्यायालय के अवकाशप्राप्त न्यायाधीश एम बी शाह होंगे. जुलाई 2011 में सर्वोच्च न्यायालय ने ऐसी एक टीम गठित करने का आदेश मनमोहन सरकार को दिया था पर वह सरकार टालमटोल करती रही थी. मनमोहन सरकार लगातार उस फैसले को गैरकानूनी और असंवैधानिक मानती रही और बारबार सर्वोच्च न्यायालय पर उस पर पुनर्विचार करने का दबाव बना रही थी.
नरेंद्र मोदी ने यह काम पहली बैठक में कर के अगर यह बताया है कि वे काले धन के प्रति चिंतित हैं तो यह भी साफ कर दिया है कि कोई सरकार अपने पिछले कुकर्मों के लिए सदासदा के लिए सुरक्षित नहीं है. जिन मामलों में रिश्वत ली गई है उन के रिकौर्ड लंबे समय तक रहते हैं और अगर इच्छा हो तो काले धन के हस्तांतरण का रूट पता किया जा सकता है.
इस जांच टीम में चाहे विशेष गुप्तचर विभागों के प्रतिनिधि हों पर इस से बड़ी अपेक्षा करना मूर्खता होगी. राजनीति ऐसा हमाम है जिस में कोई पाकसाफ नहीं है और हरेक के शरीर की खरोंचें दिखती हैं. जांच टीम के सदस्य उसी राजनीति की देन हैं जिस से काला धन पैदा होता है. यह हमेशा का इतिहास रहा है कि लूटने वालों में पहला नंबर खजाने की रक्षा करने वालों का होता है. फर्क यह है कि लूटने वाले एकदम से लूटना चाहते हैं जबकि सुरक्षा करने वाले थोड़ाथोड़ा मगर लगातार लूटते रहते हैं.
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