नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने से पहले, उम्मीद में देश का शेयर बाजार बहुत ऊंचा हुआ था. उस के बाद कभी ऊंचा होता है तो कभी गिरता है. जिस दिन मोदी सरकार बड़ी कंपनियों की बात करती है उस दिन शेयर बाजार ऊंचा हो जाता है और जिस दिन आम लोगों के हित की बात होती है वह गिर जाता है. भारत का ही नहीं, दुनियाभर के सभी देशों के शेयर बाजार कंपनियों के मुनाफों पर टिके हैं. और यह मुनाफा कंपनियां जल्दी से जल्दी कमाना चाहती हैं. शेयर बाजार के रोजाना ही नहीं, हर घंटे के उतारचढ़ाव से ब्रोकरिंग फर्मों, बैंकों, म्यूचुअल फंडों के मैनेजर अपनी कंपनियों को मुनाफा दिलाते हैं और खुद बोनस पाते हैं.

नतीजा यह है कि दुनिया की बहुत सी बड़ी कंपनियां अगले 5-7 साल के लिए नहीं, केवल मौजूदा साल के लिए काम करने लगी हैं और पैसों की अपनी शक्ति को येनकेनप्रकारेण मुनाफा बढ़ाने में लगाने लगी हैं. जब ईस्ट इंडिया कंपनी बनी थी या डच इंडिया कंपनी बनी थी तो उन्हें अंदाजा न था कि अफ्रीका या एशिया में उन्हें क्या मिलेगा. आज की कंपनियां, चाहे विदेशों की हों या भारत की, कल के लिए नहीं सोचतीं क्योंकि उन्हें मुनाफा आज चाहिए. जमीनों व खनिजों के जो दाम बढ़ रहे हैं वह इसलिए कि बड़ी कंपनियां इन क्षेत्रों में आ रही हैं जहां थोड़े से मोटा मुनाफा कमाया जा सकता है. जनता के हितों के लिए कंपनियों ने खोज कर काम करना बंद कर दिया है क्योंकि उस से मुनाफा कम होता है और शेयर बाजार में किरकिरी होती है.

 मानव समाज हर दम आगे बढ़ना चाहता है पर यदि नई चीजें न बनें, नए आविष्कार न हों तो यह संभव नहीं, खोखली होती सरकारों के लिए लंबे शोध के बाद नए उत्पाद तैयार करना असंभव है. कंपनियांपहले यह करती थीं पर आज सिवा मोबाइल टैक्नोलौजी के क्षेत्र के यह बहुत कम हो रहा है क्योंकि शेयर बाजार की धुंध हर आंख को कमजोर कर रही है. यह देश की प्रगति का सूचक नहीं, मुनाफाखोरी का प्रतीक है.

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