लगातार नौवीं बार
अक्तूबर के पहले हफ्ते में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका यात्रा, फिर उन का झाड़ू पुराण और उस के बाद महाराष्ट्र, हरियाणा के विधानसभा चुनावों में उन की गर्जना के बीच मुलायम सिंह यादव समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष चुन लिए गए. यह खबर बौक्स आइटम बन कर रह गई. क्षेत्रीय दलों के राष्ट्रीय अधिवेशन बड़े महत्त्वपूर्ण होते हैं जिन का दायरा भले ही एक प्रदेश हो लेकिन बातें अंतरिक्ष तक की होती हैं. बहरहाल, मुलायम आंखें मिचमिचाए चेहरे पर ओज व तेज लिए 9वीं बार सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष चुने गए तो हमेशा की तरह कोई विरोध नहीं हुआ और किसी चिडि़या ने चूं तक नहीं की. इस लोकतांत्रिक खूबी पर कौन कुरबान न जाए जिस में एक पंक्ति का प्रस्ताव कोई अदना या दूसरी पंक्ति का नेता पढ़ता है और उस का कोई भाई अनुमोदन कर फख्र महसूस करता है और आखिर में अधिवेशन रात्रि भोज में सिमट कर रह जाता है.
ऐसी दीवानगी
दक्षिण भारत के लोग बड़े जज्बाती होते हैं, बातबात पर खुदकुशी करने पर उतारू हो आते हैं. तमिलनाडु की तत्कालीन मुख्यमंत्री जयललिता को पैसों की हेराफेरी के इल्जाम में अदालत ने जेल की सजा क्या सुनाई लोगों ने खुदकुशी करना शुरू कर दिया.
इस दीवानगी से लोगों का ध्यान आरोप से हट कर इस बेवकूफी पर आ कर टिक गया कि यह तो हद हो गई. और इसे लोकप्रियता एक दफा मान भी लिया जाए पर बेगुनाही का पैमाना नहीं माना जाना चाहिए. लोगों को इस तरह किसी नेता के समर्थन में आत्महत्या नहीं करनी चाहिए. एक फर्क दिशाओं का भी है. उत्तर भारत की तरफ के लोग बड़ेबड़े घोटालेबाजों के जेल जाने पर जश्न मनाते हैं कि देखो, अपना नेता वाकई सच्चा नेता निकला, चलो इसी खुशी में किसी चौराहे पर मिठाई बांटते हैं. दक्षिण वालों को इन से सीखना चाहिए कि भावुकता और कैसे व्यक्त की जा सकती है.