महाराष्ट्र की प्रगतिशील राज्य की छवि को बारबार कुचलने की कोशिश जारी है. कामरेड गोविंद पानसरे पर हुआ जानलेवा हमला और उस से उन की हुई मौत से फिर एक बार सामाजिक कार्यकर्ताओं पर होने वाले हमलों का विषय गंभीर हुआ है. महाराष्ट्र को और कितनी मौत चाहिए, यह सवाल आम जनमानस से ले कर सोशल मीडिया तक में चर्चा का विषय बना हुआ है. ‘जो बोलेगा मारा जाएगा’ ऐसा ही कुछ महाराष्ट्र में हो रहा है. महाराष्ट्र के नेता कामरेड गोविंद पानसरे और उन की पत्नी पर कोल्हापुर में दिनदहाड़े हमला हुआ. इलाज में सफलता मिलते न देख कर उन्हें मुंबई स्थित बीच कैंडी अस्पताल में दाखिल कराया गया, जहां उन की मौत हो गई. पानसरे की मौत के बाद भी कोई हमलावर पुलिस की गिरफ्त में नहीं आया है. इस के पहले डा. नरेंद्र दाभोलकर की हत्या में शामिल किसी भी हत्यारे को पकड़ने में सरकार को सफलता नहीं मिली है.
महाराष्ट्र में आरटीआई कानून लागू होने के बाद से ले कर आज तक कई कार्यकर्ताओं पर जानलेवा हमले हुए हैं. इन में डा. नरेंद्र दाभोलकर और गोविंद पानसरे के नाम भी जुड़ गए हैं. भले ही ये दोनों किसी की सूचना नहीं इकट्ठा करते थे लेकिन गलत कुरीतियों के खिलाफ जम कर अपनी बात रख कर उस के कार्यान्वयन से पीछे नहीं हटते थे. दाभोलकर और पानसरे की हत्या से पहले पुणे के सतीश शेट्टी की हत्या हुई थी. पिछले 11 सालों में कितने लोगों ने आरटीआई ऐक्ट का इस्तेमाल और सामाजिक मामलों को उठाने के कारण अपनी जान गंवाई और कितने लोगों पर जानलेवा हमले हुए, इस का जवाब न केंद्र के पास है, न राज्य सरकार के पास. सामाजिक आंदोलन की अगुआई करने वालों पर हमला होना नई बात नहीं है.
आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें
डिजिटल

सरिता सब्सक्रिप्शन से जुड़ेें और पाएं
- सरिता मैगजीन का सारा कंटेंट
- देश विदेश के राजनैतिक मुद्दे
- 7000 से ज्यादा कहानियां
- समाजिक समस्याओं पर चोट करते लेख
डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

सरिता सब्सक्रिप्शन से जुड़ेें और पाएं
- सरिता मैगजीन का सारा कंटेंट
- देश विदेश के राजनैतिक मुद्दे
- 7000 से ज्यादा कहानियां
- समाजिक समस्याओं पर चोट करते लेख
- 24 प्रिंट मैगजीन