राजकुमार सुंदरानी भोपाल के नजदीक सीहोर के बस स्टैंड से लगी सिंधी कालोनी का वाशिंदा है. 4 अगस्त को वह जलगांव से भोपाल आने वाली कामायनी ऐक्सप्रैस में सवार हुआ था. उसे एस-4 कोच में ऊपर की बर्थ मिली थी. अपने मामा की मौत पर दुख जताने के लिए जलगांव गया राजकुमार खुद अपनी मौत से रूबरू हो कर सलामत भोपाल तो आ गया पर हरदा रेल हादसे का चश्मदीद यह नौजवान गहरे सदमे में है. उसे खुद के जिंदा बच जाने पर यकीन नहीं हो रहा और जो मंजर उस ने देखा था उसे याद कर वह पसीनेपसीने हो उठता है. राजकुमार बताता है, हादसे की रात मैं अपनी बर्थ पर लेटा, जाग रहा था. रात में सवा 11 बजे मुझे जोरदार झटका लगा. इतना तो मैं समझ गया था कि कोई हादसा हुआ है. झटका इतनी जोर का था कि मैं 2 दफा गिरतेगिरते बचा और गिरने से बचने के लिए कोई सहारा ढूंढ़ने लगा. तभी मेरे हाथ में रेल रोकने वाली जंजीर आ गई और मैं ने उसे कस कर पकड़ लिया. लेकिन जो मुसाफिर नींद में थे वे गिर पड़े थे और डब्बे में शोरशराबे के साथ अफरातफरी व भगदड़ मच गई थी.

राजकुमार ने नीचे उतरने की कोशिश की, तभी किसी यात्री ने मोबाइल की टौर्च जलाई जिस की रोशनी में उस ने देखा कि कुछ मुसाफिर इमरजैंसी खिड़की से बाहर निकल रहे हैं. उसे भी उम्मीद बंधी. वह खिसक कर उस खिड़की पर पहुंच गया और आगे वाले यात्री के कूदते ही खुद उस ने भी बाहर की तरफ छलांग लगा दी. लेकिन उस की हालत आसमान से टपके खजूर में अटके जैसी हो गई थी. नीम अंधेरे में वह खिड़की के जरिए बाहर तो आ गया, जहां आ कर उसे समझ आया कि बाहर चारों तरफ पानी ही पानी है. आसमान से तो लगातार बारिश हो ही रही थी. राजकुमार को तैरना नहीं आता था, इसलिए उस ने मान लिया था कि अब तो मौत तय है. तभी दिमाग में एकाएक ही यह बात आई कि पानी ज्यादा गहरा नहीं है, कमर तक है लिहाजा उस ने पानी में भारी कदमों से चलना शुरू कर दिया.

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