सौजन्य- सत्यकथा

नाम की तरह चंचला का दिल भी चंचल था. तभी तो 6 महीने तक प्रेमी मिथुन से प्यार करने के बाद उस ने दूसरे प्रेमी आकाश को चुन लिया. आकाश और चंचला को जब भी मौका मिलता, जमाने की नजरों से बचते हुए वे आम के बगीचे में निकल जाते थे और जी भर कर बातें करते थे. एक दिन काले घने लंबे केशों को अंगुलियों में लपेट कर खेल रहा आकाश चंचला की झील सी गहरी आंखों में डूबते हुए बोला, ‘‘तुम बेहद खूबसूरत हो, चंचला.’’

‘‘अच्छा,’’ अपनी खूबसूरती की तारीफ सुन कर इठलाती हुई चंचला आगे बोली, ‘‘क्या मैं वाकई बेहद खूबसूरत हूं या यूं ही...’’

‘‘चाहे तुम जिस की भी सौगंध ले लो, मैं झूठी कसमें नहीं खाता हूं. जब से तुम मेरी जिंदगी में आई हो, मेरी जिंदगी ही बदल गई है.’’ चंचला को अपने आगोश में लेते हुए आकाश ने लंबी गहरी सांसें लीं तो चंचला के बदन में आकाश के गरम बदन के स्पर्श के बाद एक झुरझुरी सी दौड़ पड़ी और उसे कस कर अपनी बांहों में भर लिया.

फिर उस की आंखों में झांकती हुई वह धीरे से बोली, ‘‘क्या तुम सचमुच मुझे बेहद प्यार करते हो?’’

‘‘अपने आप से भी ज्यादा,’’ सटीक जवाब दिया आकाश ने.

‘‘कभी तुम मुझे धोखा तो नहीं दोगे?’’

‘‘चाहे तो कोरे कागज पर लिखवा लो. मेरा नाम यूं ही आकाश नहीं है, दिल भी मेरा आकाश की तरह बड़ा है. रही धोखा देने वाली बात तो आज तो ऐसी बात कह दी तुम ने, ऐसी बात फिर से मत कहना. मैं क्या तुम्हें धोखेबाज नजर आता हूं या मेरा प्यार ही धोखा है?’’ खुद की बांहों से चंचला को दूर करते हुए आकाश बोला.

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