सौजन्य- सत्यकथा
दक्षिणी दिल्ली का एक पौश इलाका है वसंत कुंज. सुबह के 5 बज चुके थे. वहां के एक पार्क में जौगिंग करने वालों का आना शुरू हो चुका था. हालांकि उन की संख्या पहले की तुलना में काफी कम थी, जबकि एक समय था जब यह पार्क सूर्योदय से एक घंटा पहले ही काफी गुलजार हो जाता था. मार्निंग वौक, जौगिंग या फिर पार्क में एक्सरसाइज करने वालों के अलावा अपने पेट्स को घुमाने वाले आ जाते थे.
रमाकांत शर्मा और सुदर्शन ठाकुर पार्क में रोजाना आते थे. नवंबर की 10 तारीख को भी दोनों समय से पार्क पहुंच गए थे. उन की लंबी दोस्ती थी. वे पार्क आने वाले हर उस व्यक्ति को पहचानते थे, जो रोजाना आते थे. यहां तक कि उन से जानपहचान भी थी. दोनों अभी जौगिंग की शुरुआत करने वाले ही थे कि उन के ठीक बगल से 2 युवतियां तेजी से दौड़ती हुई निकल गईं.
रमाकांत उन के बारे में बोलने को हुए, उस से पहले सुदर्शन बोल पड़े, ‘‘यार ये दोनों नई आई हैं. विदेशी हैं. उन्हें हम ने कल मार्केट में भी कैब ड्राइवर से उलझते देखा था.’’
‘‘लेकिन तुम्हें कैसे मालूम विदेशी हैं, दिखने में तो इंडियन ही लग रही हैं,’’ रमाकांत बोले.
‘‘अरे यार, इन के कलर और नाकनक्श से ही कोई भी पहचान लेगा कि ये विदेशी हैं. और कल यह एक कैब ड्राइवर से जो भाषा बोल रही थीं, वह उसे समझ नहीं पा रहा था. ड्राइवर बारबार बोल रहा था स्पीक इन इंग्लिश,’’ सुदर्शन बोले.
‘‘तो फिर वे कौन सी भाषा बोल रही थीं?’’
‘‘मुझे क्या पता, उन के बीच हुई बहस से सिर्फ इतना पता चला कि पैसे के लेनदेन की बात हो रही थी. वे 20 हजार और बारबार मोनू बोल रही थीं.’’ सुदर्शन ने स्पष्ट किया. उन्होंने आगे बताया, ‘‘…लेकिन यार एक बात बोलूं उन लड़कियों की हरकत कुछ अच्छी नहीं लगी.’’
‘‘अच्छी नहीं लगी का क्या मतलब?’’ रमाकांत ने जिज्ञासवश पूछा.
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‘‘अच्छी नहीं का मतलब उन की देह दिखाने वाली वेशभूषा और बोलचाल का लहजा बाजारू औरतों की तरह लगा था.’’ सुदर्शन बोले.
‘‘यह तुम कैसे कह सकते हो?’’
‘‘देखो, कोई भी अच्छी लड़की इंडियन हो या किसी दूसरे देश की, बोलचाल से उस के संस्कारी और सभ्य होने का पता चल ही जाता है. यही देखो न, दोनों कैसे दौड़ती आ रही हैं. कोई सभ्य लड़की वैसे दौड़ेगी क्या? कपड़े भी उन्होंने कैसे पहन रखे हैं.’’
दौड़ती दोनों लड़कियों की ओर इशारा करते हुए सुदर्शन बोले, जो उन की ओर ही लौट रही थी. देखतेदेखते दोनों पास से गुजर भी गईं.
संयोग से उन की बातें बलराज ने भी सुनीं. वह दिल्ली पुलिस क्राइम ब्रांच में एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग यूनिट के एएसआई हैं. उन्हें भी सूचना मिली थी कि विदेशी युवतियां वसंत कुंज इलाके में रह कर सैक्स वर्कर का काम रही हैं. इसी सिलसिले में वह पार्क में जौगिंग के बहाने से आए थे. वह चाहते तो वहीं दोनों को हिरासत में ले सकते थे, लेकिन वह उन्हें रंगेहाथ पकड़ना चाहते थे.
पार्क में सुदर्शन और रमाकांत की बातों से बलराज को इतना तो सुराग मिल ही गया था कि उन विदेशी युवतियों का वसंत कुंज के डी ब्लौक में आनाजाना होता है. इस आधार पर उन्होंने सब से पहले कैब ड्राइवर पर नजर रखी. वह अपने मुकाम तक पहुंचना चाहते थे, इसलिए वह वसंत कुंज इलाके से कैब के जरिए इधरउधर आनेजाने लगे.
ड्राइवरों से बातोंबातों में मौजमस्ती वाले अड्डे या विदेशी सैक्स वर्कर की भी बातें करने लगे. जल्द ही उन्हें एक कैब ड्राइवर से मोनू के बारे में जानकारी मिल गई, उन्होंने मोनू के मिलने का ठिकाना और उस का फोन नंबर भी मालूम कर लिया. जब उन्हें कालगर्ल की पक्की जानकारी मिल गई तो उन्होंने यह बात इंसपेक्टर अमलेश्वर राय को बताई.
मामला विदेशी कालगर्ल से संबंधित था, इसलिए इंसपेक्टर अमलेश्वर राय ने यह सूचना डीसीपी (क्राइम) मोनिका भारद्वाज को दी.
इस सूचना के बाद डीसीपी (क्राइम) मोनिका भारद्वाज ने एसीपी एस.के. गुलिया की देखरेख में एक टीम बनाई. टीम में अमलेश्वर राय, एएसआई बलराज और एसआई गुंजन सिंह को शामिल किया. एएसआई बलराज को एक फरजी ग्राहक बनाया गया.
योजना के अनुसार उन्होंने मोनू से फोन पर संपर्क कर बताया कि उन्हें यह नंबर टोनी ने दिया है. हमें 3-4 विदेशी टैक्सियों की जरूरत है. ‘टैक्सी’ मोनू के धंधे का कोडवर्ड था. इस कोडवर्ड से मोनू समझ गया कि ग्राहक जैनुइन है.
इसलिए मोनू ने कहा कि उस के पास उज्बेकिस्तान की लड़कियां आई हुई हैं. प्रत्येक के 20 से 25 हजार रुपए लगेंगे. बलराज ने हामी भर दी.
उस के बाद 13 नवंबर को मोनू के कहे मुताबिक रोहिणी के सैक्टर-15 स्थित बैंक औफ बड़ौदा के करीब पहुंच कर बलराज ने मोनू को फोन किया. मोनू ने उन्हें एक कैब का नंबर दिया.
थोड़ी देर में ही उसी नंबर वाली कैब में 2 युवतियां आ गईं. उन्हें देखते ही बलराज ने पहचान लिया, दोनों वही थीं, जिन्हें उन्होंने कुछ दिन पहले वसंत कुंज के पार्क में दौड़ लगाते देखा था. फरजी ग्राहक बने बलराज उन की कैब के पास पहुंचे. उस में कैब ड्राइवर समेत 2 विदेशी युवतियां मौजूद थीं.
उन से बलराज ने 20 हजार रुपए में प्रत्येक से सौदा तय कर लिया. सौदा तय होते ही औनलाइन पेमेंट करने के लिए मोबाइल फोन निकाला. पेमेंट करने के बजाए उन्होंने पास में मौजूद पुलिस टीम को वाट्सऐप मैसेज कर दिया. तुरंत टीम के सदस्य वहां पहुंच गए और तीनों को गिरफ्तार कर लिया.
तीनों को हिरासत में ले कर पुलिस थाने आ गई. युवतियों की उम्र 24 और 28 साल थी, जबकि कैब ड्राइवर 47 साल का पूरन सिंह था. पकड़ी गई उज्बेकिस्तानी युवतियों ने बताया कि दोनों टूरिस्ट वीजा ले कर भारत आई हैं. उन का मकसद ही जिस्फरोशी का धंधा करना था.
इस के लिए उन्होंने दलाल के माध्यम से धंधा शुरू कर दिया था. उन्होंने वसंत कुंज में किराए का एक फ्लैट ले लिया था. उन का टूरिस्ट वीजा भी खत्म हो चुका था, फिर भी भारत में रह रही थीं.
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जिस्मफरोशी का धंधा वे एक एजेंट मोनू के माध्यम से करती थीं. उसी ने उसे किराए पर फ्लैट दिलवाया था और वही ग्राहक भी तलाशता था. उन्हें दिल्ली एनसीआर के होटलों या फार्महाउसों के लिए बुक करता था.
रूस, तुर्की और उज्बेकिस्तान की सैक्स वर्कर युवतियों की नजर में भारत सुरक्षित और आमदनी वाला देश है. वहां की लड़कियां टूरिस्ट वीजा ले कर बिजनैस या स्टडी के बहाने से भारत आ कर रहने लगती हैं.
पकड़ी युवतियों ने बताया कि 4-5 महीने पहले वह रमेश नाम के दलाल के संपर्क में आई थीं. उस ने मोनू को बतौर एजेंट शामिल कर दिया था. उन्हें ग्राहकों तक पहुंचाने का काम कैब ड्राइवर पूरन करता था.
जहांगीरपुरी, दिल्ली के रहने वाले ड्राइवर ने स्वीकार किया कि कैब किराए के बदले में उसे प्रत्येक से 2-2 हजार रुपए कमीशन मिल जाता था.
उल्लेखनीय है कि भारत के बड़े शहरों में उज्बेकिस्तानी लड़कियों के सैक्स रैकेट का आए दिन खुलासा होता रहता है. वे पकड़ी भी जाती हैं, उन्हें रेव पार्टी, मसाज पार्लर या हाईप्रोफाइल कालगर्ल बना कर परोसा जाता रहा है.