एक दिन सूरजभान ने घर छोड़ा, तो नशे में अवध ने कहा, ‘‘हर बार बाहर से चले जाते हो. इसे अपना ही घर समझो. चलो, कुछ खा लेते हैं.’’
सूरजभान ने कहा, ‘‘भैया, घर पहुंचने में देर हो जाएगी. रात हो रही है, फिर कभी सही.’’
‘‘नहीं, रोज यही कहते हो. देर हो जाए तो यहीं रुक जाना. मोबाइल से घर पर बता दो कि अपने दोस्त के यहां रुक गए हो...’’ फिर अवध ने रूपमती को आवाज दी, ‘‘कुछ बनाओ मेरा दोस्त, मेरा भाई आया है.’’
रूपमती को तो मनचाही मुराद मिल गई. जिस से छिपछिप कर मिलना पड़ता था, उसे उस का पति घर ले कर आ रहा है. खा पीकर अवध तो नशे में सोता, तो सीधा अगले दिन के 10-11 बजे ही उठता. इस बीच रूपमती और सूरजभान का मधुर मिलन हो जाता और सुबह जल्दी उठ कर वह अपने घर चला जाता.
सूरजभान की पत्नी अनुपमा गुस्से की आग में जल रही थी. उस का जलना लाजिमी भी था. उस का पति महीनों से रातरात भर गायब रहता था. सुबह आ कर सो जाता और खाना खाने के बाद जो दोपहर से काम पर जाने के बहाने से निकलता, फिर दूसरे दिन सुबह ही वापस आता.
अनुपमा जानती थी कि उस का पति रातभर किसी बाजारू औरत के आगोश में रहता होगा. वह अपने पति को रिझाने का हर जतन कर चुकी थी, लेकिन उसे सिवाय गालियों के कुछ और नहीं मिलता था.
ससुर से शिकायत करने पर भी अनुपमा को यही जवाब मिला कि पतिपत्नी के बीच में हम क्या बोल सकते हैं. काम पर आतेजाते उस की नजर नौकर दारा पर पड़ती रहती. उस के कसे हुए शरीर, ऊंची कदकाठी, कसरती बदन को देख कर अनुपमा के बदन में चींटियां सी रेंगने लगतीं.
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