मुंबई से सटे उपनगर विरार (पश्चिम) के जकात नाका परिसर में स्थित मुक्तिधाम ओमश्री साईं कोऔपरेटिव हाउसिंग सोसायटी नंबर 45/5 में आदिवासी समाज का एक छोटा सा परिवार रहता था, जिस के मुखिया लक्ष्मण वाघरी थे. वह सालों पहले रोजीरोटी की तलाश में गुजरात से महाराष्ट्र आए थे.

लक्ष्मण वाघरी सीधेसादे सज्जन व्यक्ति थे. आसपड़ोस के लोग उन का सम्मान करते थे. उन के परिवार में उन की पत्नी के अलावा एक बेटा दीपक वाघरी था. उन्होंने बेटे की शादी कल्याण की रहने वाली एक सुंदर और सुशील लड़की रूपा से कर दी थी. शादी के बाद वह जल्दी ही 2 बच्चों का पिता बन गया था.

कोई बड़ी डिग्री न होने के कारण उसे कोई अच्छी नौकरी नहीं मिल पाई थी. वह अपना पुश्तैनी काम करने लगा था. उस के पिता लक्ष्मण वाघरी की विरार (पश्चिम) की स्वाद गली में सागसब्जी की बड़ी दुकान थी. वह चाहते थे कि दुकान दीपक को सौंप कर गांव चले जाएं. दीपक की शादी के बाद उन्होंने ऐसा ही किया भी. मातापिता के गांव जाने के बाद घरपरिवार और दुकान की सारी जिम्मेदारी दीपक वाघरी के कंधों पर आ गई थी.

रूपा मुंबई की एक प्राइवेट फर्म में नौकरी करती थी. वह सुबह 8 बजे घर से निकलती थी तो रात को लगभग 8 बजे घर लौटती थी. दीपक के दोनों बच्चे पास के स्कूल में पढ़ते थे.

दीपक के परिवार में सब कुछ ठीक चल रहा था, लेकिन 2 सितंबर, 2016 को अचानक कुछ ऐसा हुआ, जो नहीं होना चाहिए था. दरअसल दीपक ने अनायास ही एक ऐसी लोमहर्षक घटना को अंजाम दे डाला, जिसे देख कर हर किसी का कलेजा दहल उठा. उस दिन दोपहर 2 बजे का समय था. सोसायटी के तमाम पुरुष और महिलाएं अपनेअपने काम पर गए हुए थे.

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