जिस देश में करोड़ों की आबादी दो जून की रोटी के लिए तरसती हो, वहां एक चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी के पास करोड़ों की संपत्ति होना समूचे देश, समाज व सरकार के मुंह पर तमाचा है. घूसखोरी और भ्रष्टाचार के दलदल में आकंठ डूबे सरकारी बाबुओं की कारस्तानी के चलते करोड़ोंअरबों के नोट दफन हो कर रह जाते हैं. जिस के चलते बढ़ती है देश में बेइंतहा महंगाई. कैसे, पड़ताल कर रहे हैं भारत भूषण श्रीवास्तव.
 
टाइमकीपर का ओहदा चपरासी से एक पायदान ऊपर और क्लर्क से एक पायदान नीचे होता है जिस में पगार महज 15 से 20 हजार रुपए के बीच मिलती है. इस रकम से टाइमकीपर अपने परिवार का गुजारा मुश्किल से ही कर पाता है. यह बात मुगालता साबित हुई जब 7 मार्च को इंदौर के पीडब्लूडी महकमे का एक टाइमकीपर गुरु कृपाल सिंह उर्फ पप्पू करोड़ों का आसामी निकला.
इस दिन सुबहसुबह लोकायुक्त पुलिस ने जब पप्पू के घर में छापा मारा तो उस की जायदाद का ब्योरा देख सभी की आंखें फटी की फटी रह गईं. पुलिस वाले तो दूर आम लोगों को भी यकीन करने में काफी हिम्मत जुटानी पड़ी कि एक मामूली सा टाइमकीपर करोड़ों का मालिक हो सकता है. 
चतुर्थ श्रेणी का यह सरकारी मुलाजिम इंदौर के पौश इलाके तिलक नगर में खुद के मकान में रहता था लेकिन उस के इंदौर में ही 1-2 नहीं, बल्कि 14 मकान और हैं.
पप्पू के घर से 13 लाख रुपए नकद बरामद हुए. 11 जगह ख्ेतीकिसानी की जमीनें उस ने खरीद रखी थीं. इस के अलावा उस की तिजोरी में कैद गहनों की कीमत ढाई करोड़ रुपए आंकी गई. बीमा पौलिसियों में भी उस ने भारीभरकम पैसा लगा रखा था. 
कलियुग के इस एक और कुबेर के पास 3 टाटा सफारी कारें थीं, 2 लाइसैंसशुदा बंदूकें भी उस के घर से मिलीं और विदेशी कीमती शराब की 21 बोतलें भी करीने से उस ने सजा रखी थीं. उस के बैंक खातों में 20 लाख के लगभग रुपए जमा थे.
आम बोलचाल की जबान में पप्पू, भोंदू या बुद्धू आदमी को कहा जाता है. पर पप्पू कौन है, यह इस छापे से उजागर हुआ. इस पप्पू की 25 साल की नौकरी में महज 12 लाख रुपए पगार की शक्ल में मिले. मामला किसी जादू से कम नहीं कि इस टाइमकीपर ने रहने, खानेपीने और दीगर खर्चों पर यह पगार खर्च नहीं की उलटे तकरीबन 40 करोड़ रुपए की जायदाद और बना ली.
पकड़े जाने पर पप्पू दलील देता रहा कि तमाम पैसा और जायदाद पुश्तैनी है पर जल्द ही उजागर हो गया कि वह एक मामूली खातेपीते घर का है और पैसों का यह महल उस ने सरकारी नौकरी में आने के बाद खड़ा किया था. इस के पहले वह धार जिले में चपरासी था और कुछ साल पहले ही टाइमकीपर के ओहदे पर तरक्की पा कर इंदौर आया था.
लोगों को हैरत इस बात की है कि सरकारी चपरासी कैसे करोड़ों की घूस खा सकता है और अगर खा सकता है तो इस और ऐसे महकमों के इंजीनियर साहबों को मिलने वाली घूस तो अरबों में होनी चाहिए.
गुरु कृपाल सिंह अब जेल में है लेकिन शक के दायरे में है क्योंकि टाइमकीपर का काम इतना अहम या जिम्मेदारी वाला नहीं होता कि उसे इतनी तगड़ी घूस मिले. इसलिए अंदाजा यह लगाया जा रहा है कि आजकल घूस भी ठेके पर चलने लगी है, मुमकिन है किसी और अफसर ने उसे यह पैसा दे रखा हो जिस की जांच होनी चाहिए.
मुमकिन यह भी है कि पप्पू घूस खाने के साथसाथ बड़े पैमाने पर फर्जीवाड़ा भी कर रहा हो. लोक निर्माण महकमे में मजदूरों का हिसाबकिताब टाइमकीपर रखता है. अगर उस ने 50 मजदूर भी रोज के 300 रुपए के हिसाब से फर्जी तरीके से भरती कर रखे थे तो रोजाना की रकम
15 हजार और महीने की साढ़े 4 लाख रुपए यानी सालभर की तकरीबन 50 लाख रुपए हो रही थी. 20 साल में उस ने अगर 10 करोड़ रुपए की भी घूस खाई तो मय ब्याज के उस का 40 करोड़ रुपए होना लाजिमी है. वजह, खरीदी गई जायदाद और सोने के गहनों के दाम भी बढ़े.
आजकल रईस से रईस लोग भी मारे डर के घर में 20-25 हजार रुपए से ज्यादा नहीं रखते. लंबे वक्त तक ज्यादा पैसा रखने में दूसरा नुकसान यह होता है कि पैसे की कीमत कम हो जाती है.
एक हालिया सर्वे में दिलचस्प बात यह बताई गई थी कि अगर साल 1985 में आप ने 1 लाख रुपए नकद घर में छोड़े थे तो 2013 में उन की कीमत महज 12 हजार रुपए रह गई थी यानी 18 साल पहले 12 हजार रुपए में आप जितना सामान खरीद सकते थे उसे 2013 में खरीदने के लिए 1 लाख रुपए खर्च करने पड़ते.
पर पप्पू जैसे घूसखोरों को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता. जो घूस में मिले नोटों को कूड़ेकरकट की तरह ठूंसठूंस कर घर में जगहजगह रखते हैं. रुपए की कीमत या खरीदी ताकत गिरती है तो गिरती रहे. वजह, इन के पास रोज घूस का पैसा खिंचा चला आता है. दूसरे, घूस के पैसे में खरीदी जमीनजायदाद और गहनों की कीमत हजारों गुना बढ़ जाती है. इसलिए पैसा इन घूसखोरों को हाथ का मैल लगता है.
छापे व नोटों का अंबार 
घूसखोरी और घूसखोरों से देशभर के लोग परेशान हैं लेकिन मध्य प्रदेश घूसखोरों का स्वप्निल स्थल बनता जा रहा है जहां औसतन हर दिन 2 घूसखोर पकड़े जाते हैं और महीने में 1 छापा चौंका देने वाला पड़ता है जिस में बरामद नकदी, जमीनजायदाद और घूसखोर के आलीशान मकान, कारें, गहने वगैरह देख छुटभैये घूसखोरों पर लोगों को तरस आने लगता है और न पकड़े जाने वालों पर फख्र होता है.
ऐसे ही एक छापे में भोपाल के नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण महकमे के एक इंजीनियर प्रह्लाद सिंह पटेल के ई-7,
लाला लाजपतराय कालोनी के बंगला नंबर बी-106 से करोड़ों की जायदाद के कागजात मिले थे. मामूली तरह से रहने वाले प्रह्लाद पटेल के घर में नकदी 57 लाख रुपए की मिली थी. ये नोट उस ने गद्दों, कनस्तरों, पेटियों, रसोई के डब्बों और घर में बने भगवान के मंदिर के पीछे तक छिपा रखे थे. घर के किसी हिस्से का कोई कोना नहीं था, जहां से नोटों की गड्डियां न मिली हों.
प्रह्लाद पटेल के पड़ोसियों की मानें तो वह किसी से ज्यादा बातचीत नहीं करता था और ऐसे सादा, मामूली तरीके से रहता, मानो गुजारा मुश्किल से कर पा रहा हो. उस के महकमे के एक इंजीनियर का कहना है कि वह दफ्तर के लोगों को चाय पिलाने में भी कतराता था यानी कंजूस था और हम समझते रहे कि ईमानदार था. अब जा कर पता चला कि वह बगैर घूस के कोई काम नहीं करता था और सारा माल अकेले हड़प जाता था.
इस मामले में इकलौती नई बात यह थी कि 57 लाख रुपए में से कोई 20 लाख रुपए के नोटों में दीमक लगी हुई थी जिस की परवा इस इंजीनियर को नहीं थी. माल मुफ्त का जो था. लिहाजा, कुछ लाख के नोट सड़ जाएं या खराब हो जाएं, उस की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ना था.
ये नोट बाजार में चलते तो उन की कीमत बनी रहती लेकिन घूसखोरों के पास कितने अरबोंखरबों के नोट रद्दी कागजों जैसे पड़े हैं, इस का अंदाजा कोई नहीं लगा सकता. रिजर्व बैंक नोट छापछाप कर सरकार को तो देता है पर बाजार में कितने व कौन से नोट चल रहे हैं, इस की जिम्मेदारी उस की नहीं बनती.
इन घूसखोरों पर रिश्वत और चारसौबीसी का तो मुकदमा दर्ज होता है पर नोटों के खराब होने की बाबत कोई कार्यवाही नहीं होती. बरामद नकदी सरकारी खजाने में चली जाती है. उन आम लोगों में नहीं बंटती जिन से घूसखोर बेरहमी से घूस लेते हैं.
समझदार घूसखोर जमीनजायदाद बनाते हैं दूसरों के नाम से, यहांवहां पैसा लगाते हैं साले और भाइयों के नाम से. कारोबार करते हैं तो रकम भी बढ़ती जाती है, जिस का हिसाबकिताब देना मुश्किल हो जाता है. मगर इन का लालच खत्म नहीं होता.
काले धन पर तमाम नेता हायहाय करते नजर आते हैं कि विदेशी बैंकों में जमा पैसा वापस लाओ, उस से देश की माली हालत सुधर जाएगी. इन लोगों का ध्यान उन घूसखोरों पर नहीं जाता जो बगैर कुछ करेधरे, अपने घर को ही मिनी स्विस बैंक बना बैठते हैं. अगर एक दिन एक वक्त में एकसाथ तमाम सरकारी मुलाजिमों के घर पर छापा मारा जाए तो खरबों की नकदी बरामद होगी. इस से भी देश की माली हालत सुधरेगी.
घर में नकदी रखना हर किसी का हक है पर उस का हिसाबकिताब सरकार ले पाए तो बात हर्ज की नहीं. ईमानदार और शरीफ आदमी के घर में ज्यादा नकद पैसा रखने की कोई वजह नहीं क्योंकि उस के पास ज्यादा बचता ही नहीं. आमदनी की कमाई का एकचौथाई तो तरहतरह के टैक्स में चला जाता है. 
व्यापारी और कारोबारी ज्यादा नकद नहीं रखते. अपने धंधे में लगा कर उसे और बढ़ाते रहते हैं जो देश की और खुद की तरक्की वाली बात है. पर इन घूसखोरों का क्या, जो नोट तो डकारते जाते हैं पर उन्हें बाजार में नहीं चला पाते.
कुछ समझदार घूसखोर भी हैं जिन्हें नकद रखने के नुकसान का एहसास
था. लिहाजा, उन्होंने घूस का पैसा, जमीनजायदाद, मकानदुकान खरीदी और कारोबार में लगाया. ऐसे ही हैं मध्य प्रदेश के एक जौइंट कमिश्नर रविकांत द्विवेदी, जिन के यहां बीती 30 जनवरी के छापे में कोई 60 करोड़ की बेनामी जायदाद पकड़ी गई. द्विवेदी ने अपनी पत्नी के नाम से होटल व बेटे के नाम से प्रिंटिंग प्रैस खोल रखा था. चूंकि घाटे की चिंता या परवा नहीं थी, इसलिए दोनों कारोबार चल निकले. पकड़े भी गए तो कहते रहे कि यह तो कारोबार से हुई आमदनी थी.
भ्रष्टतंत्र और घूसखोरी
घूसखोर खुद को मिले अधिकारों और आम आदमी की परेशानी का फायदा उठाते हैं. किसान की ऋणपुस्तिका, बही बगैर घूस के नहीं बनते, बच्चों का जन्म प्रमाणपत्र, ड्राइविंग लाइसैंस, मकान बनवाने की इजाजत और अनापत्ति प्रमाणपत्र, पासपोर्ट व नामांतरण जैसे सैकड़ों काम हैं जिन के लिए घूस देनी पड़ती है. ठेके और लाइसैंस तो घूसखोरी की पहली पसंद हैं जिन में एक डील में ही लाखों के वारेन्यारे हो जाते हैं.
इस पर भी घूसखोरों का जी नहीं भरा तो पैसे ले कर डाक्टर, हवलदार और इंस्पैक्टर बनाना शुरू कर दिया. मध्य प्रदेश के व्यवसायिक परीक्षा मंडल का हालिया प्रतियोगी परीक्षाओं का महाघोटाला एक मिसाल है जिस का हर एक आरोपी करोड़पति है. इन लोगों के पास से करोड़ों की नकदी पकड़ी गई और जो नहीं पकड़ पाई वह खरबों की है. नोट सड़ रहे हैं, बेकार पड़े हैं, इस से किसी को सरोकार नहीं. देश में महंगाई के बढ़ने की एक बड़ी वजह यह बेशुमार नकदी भी है जो जाम पड़ी है.

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