अच्छे दिन आने वाले हैं… राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की राजनीतिक इकाई भारतीय जनता पार्टी ने वर्ष 2014 के आम चुनाव में यह नारा देकर देश के मतदाताओं को बहकाया था. इस नारेरूपी झूठ के चलते कांग्रेस नेता डा. मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की सरकार धराशाई हो गई और भाजपा नेता नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार सत्तासीन हो गई. झूठ की बुनियाद पर बनी व टिकी मोदी सरकार अपने सर्वाइवल के लिए समय-समय पर झूठ का ही सहारा लेती है.
एक नजर डालते हैं साल 2014 पर. भारत में आम चुनाव होने वाले थे. सभी पार्टियां चुनाव के मैदान में अपनी पूरी ताक़त झोंके हुए थीं. लेकिन इन सबके बीच एक आवाज़ जो सबसे ज़्यादा आ रही थी वह थी, ‘अच्छे दिन आने वाले हैं’. इस नारे का जादू ऐसा चला कि सातवां वर्ष जारी है और इस नारे को देना वाला व्यक्ति दिल्ली के सिंहासन पर बैठा हुआ है. भारत की जनता आज भी उस नारे को व्यावहारिक होते देखने की चाहत लिए इंतजार कर रही है.
भाजपा ने नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में अपने सहयोगी दलों के साथ मिलकर सरकार बनाई. देश की जनता को बहुत उम्मीद थी कि मोदी आए हैं तो देश की स्थिति में बदलाव भी आएंगे.लेकिन नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री पद पर विराजमान होने के बाद देश की जनता ने कई तरह के उलट-फेर देखे. जहां मोदी ने नोटबंदी से अपने कार्यकाल का स्टार्टअप किया वहीं जीएसटी के साथ देश के व्यापारियों को स्टैंडअप इंडिया का ‘तोहफ़ा’ दिया. और फिर देखते ही देखते देश की अर्थव्यवस्था ज़मीन में इतनी गहराई तक पहुंच गई कि पिछले 40 वर्षों में इतनी नीचे तक नहीं गिर पाई थी.
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आज कोरोना वायरस से दुनियाभर के देश जूझ रहे हैं वहीं इस बीच विश्व बैंक ने कहा है कि इस संकट से दक्षिण एशिया के आठ देशों की वृद्धि दर सबसे अधिक प्रभावित हो सकती है. इन देशों में भारत शामिल है.भारत और अन्य दक्षिण एशियाई देशों में 40 साल में सबसे ख़राब आर्थिक वृद्धि दर रिकॉर्ड की जा सकती है. इस संबंध में विश्व बैंक ने कोरोना वायरस संकट के बीच 12 अप्रैल को एक रिपोर्ट जारी की है.
विश्व बैंक ने ‘दक्षिण एशिया की अर्थव्यवस्था पर ताज़ा अनुमान: कोविड-19 का प्रभाव’ रिपोर्ट पेश करते हुए कहा कि भारत समेत दक्षिण एशियाई देशों में 40 वर्षों में सबसे ख़राब आर्थिक विकास दर दर्ज की जा सकती है. दक्षिण एशिया के क्षेत्र, जिनमें आठ देश शामिल हैं, में विश्व बैंक का अनुमान है कि उनकी अर्थव्यवस्था 1.8 फ़ीसदी से लेकर 2.8 फीसदी की दर से बढ़ेगी. छह महीने पहले विश्व बैंक ने 6.3 फीसद वृद्धि दर का अनुमान लगाया था. दक्षिण एशिया में सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था भारत के बारे में विश्व बैंक का अनुमान है कि चालू वित्त वर्ष में वहां वृद्धि दर 1.5 फीसदी से लेकर 2.8 फीसदी तक ही रहेगी. हालांकि, विश्व बैंक ने 31 मार्च, 2020 को ख़त्म हुए वित्त वर्ष 2019-2020 में 4.8 से 5 फीसदी की आर्थिक वृद्धि रहने का अनुमान जताया है.
विश्व बैंक की रिपोर्ट में कहा गया, “2019 के अंत में जो हरे निशान के संकेत दिख रहे थे उसे वैश्विक संकट के नकारात्मक प्रभावों ने निगल लिया है.”भारत के अलावा विश्व बैंक ने अनुमान में जताया है कि श्रीलंका, नेपाल, भूटान और बांग्लादेश की आर्थिक विकास में तेज़ गिरावट दर्ज होगी. तीन अन्य देश – पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान और मालदीव में भी मंदी आने का अनुमान है. विश्व बैंक ने 7 अप्रैल तक सभी देशों के डाटा पर यह रिपोर्ट तैयार की है.
कोरोना वायरस के फैलाव को रोकने के उपायों के कारण पूरे दक्षिण एशिया में सप्लाई चैन प्रभावित हुई है. दक्षिण एशिया में 13,000 के क़रीब मामले सामने आए हैं, जो दुनिया के अन्य भागों के मुक़ाबले में कम हैं. भारत में लॉकडाउन के कारण 1.3 अरब लोग घरों में बंद हैं, लाखों लोग बिना काम के हैं. लॉकडाउन ने बड़े और छोटे कारोबार को प्रभावित किया है. लाखों प्रवासी मज़दूर शहरों से अपने गांवों को लौट चुके हैं.
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बहरहाल, वर्ल्ड बैंक की इस ताजा रिपोर्ट के काफी पहले से राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय कई एजेंसियां भारत की अर्थव्यवस्था के गिरते जाने के प्रति सचेत करती रही हैं. ये एजेंसियां ही नहीं, विपक्षी पार्टी कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष व सांसद राहुल गांधी ने भी मोदी सरकार को बार-बार आगाह किया कि देश की आर्थिक नीति में कई दोष हैं. लेकिन ‘मन की बात’ सुनाने वाले प्रधानमंत्री मोदी भला किसी की बात कैसे सुनते.
फिर भी, सरकार ने जो कुछ कदम उठाए हैं वे नाकाफी हैं. फिलहाल देश का आर्थिक भविष्य अंधकारमय है जिसका हर देशवासी पर बुरा असर पड़ना तय है. सो, देश में रहने वाले सभी तैयारी करें, बुरे दिन आने वाले हैं…