मेरी एक सहेली को जन्मदिन पर नया स्मार्ट फोन मिला. उस में व्हाट्सऐप इंस्टौल कर वह सब को तरहतरह के मैसेज भेजती रहती. वह यह नहीं जानती थी कि मैसेज के साथ सामने वाले की स्क्रीन पर नाम भी दिखाई देता है. एक बार मेरे पास एक मैसेज आया. उस में लिखा था, ‘नमस्कार, सैंट यू अ मैसेज.’ मुझे लगा कोई बेकार का मैसेज होगा, इसलिए मैं ने उसे बिना देखे ही छोड़ दिया.
दूसरे दिन फिर एक मैसेज आया जिस पर लिखा हुआ था ‘वैलकम, सैंट यू अ मैसेज.’ मैं ने उसे भी नहीं देखा बल्कि सोच में पड़ गई कि कौन है जो मुझे इस तरह के मैसेज भेज रहा है. रोज बदलबदल कर अलगअलग नाम से मुझे मैसेज मिलते रहे. एक दिन मैं ने उस मैसेज बौक्स को खोला तो हैरान रह गई. वह मेरी सहेली का था. मैं ने उसे फोन लगाया और पूछा कि तुम रोज अपना नाम बदलबदल कर मैसेज क्यों कर रही हो? उसे स्वयं हैरानी हुई, ‘‘बोली, मैं तो नाम नहीं बदल रही.’’
‘‘लेकिन तुम्हारे मैसेज तो रोज अलगअलग नाम से आ रहे हैं?’’ मैं बोली.
मैं ने उसे जब सारा किस्सा बताया तो वह बहुत शर्मिंदा हुई. बोली, ‘‘दरअसल, मेरी ही गलती है. मैं कुछ नया करने के चक्कर में कुछकुछ लिख कर अपनी वाल पर लगा देती हूं. मुझे नहीं मालूम था कि यह मेरे नाम की जगह पर दिखाई दे रहा होगा सब को.’’
- अनीता सक्सेना, भोपाल (म.प्र.)
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मै एक सीनियर सैकंडरी स्कूल में प्रधानाचार्य के पद पर कार्यरत था. वार्षिक परीक्षा में कसबे के एक राजनेता व विद्यालय विकास समिति के सदस्य का लड़का कक्षा 11वीं में फेल हो गया. लड़के के पिता मेरे औफिस में आए और बोले, ‘‘प्रिंसिपल साहब, मेरा लड़का कैसे फेल हो गया. आप के स्कूल के कमरों के निर्माण में मैं ने कितना योगदान दिया. आप परीक्षा इंचार्ज को बुला कर पूछिए, वह कैसे फेल हुआ?’’