मेरे मित्र के भाईभाभी हनीमून से वापस आए थे और हम सब उन का सामान कार से उतारने में मदद कर रहे थे. मित्र की नई भाभी अपने हाथ में एक छोटा सा पैकेट ले कर कार से उतरने का प्रयत्न कर रही थीं, तभी मेरे मित्र ने कहा, ‘‘भाभी, यह सामान मुझे पकड़ा दो.’’ परंतु उन्होंने इसे अनसुना कर दिया. इस पर मेरे मित्र ने हंसते हुए पूछा, ‘‘भाभी, लगता है इस में कोई खाने का बढि़या सामान है जो आप मुझे नहीं दे रही हैं?’’ ‘‘है तो खाने का सामान ही, परंतु हम आप को नहीं खिलाएंगे,’’ उन्होंने हंसते हुए कहा. ‘‘अगर ऐसा है फिर तो मैं इसे जरूर खाऊंगा,’’ कहते हुए मित्र ने वह पैकेट अपनी भाभी के हाथ से उन के मना करने के बावजूद छीन लिया और वहीं पर सब के सामने खोलने लगा. जैसे ही पैकेट खुला, हम सब की हंसी का फौआरा फूट पड़ा और मेरे मित्र का झेंपता हुआ चेहरा देखने लायक था. पैकेट में भाभी की नई चमचमाती हुई सैंडिल थी जो उन्होंने हनीमून टूर में खरीदी थी.

बी डी शर्मा, यमुना विहार (दिल्ली)

हम लोग अपने मित्र के यहां घूमने के लिए गए थे. शाम के वक्त खाना खा कर टहलने के लिए निकले. जब वापस आ रहे थे तो एक सड़क पार करनी थी. लेकिन गाडि़यों के निरंतर आनेजाने के कारण नहीं कर पा रहे थे. गाडि़यां कुछ कम हुईं. केवल एक बस दूर से आती नजर आ रही थी. मित्र ने मेरे पति से कहा कि आ जाओ लेकिन मेरे पति ने कहा, रुक जाओ. इस को भी निकल जाने दो. मित्र ने कहा, ‘‘अरे, बस अभी दूर है और इस से पहले एक स्पीड ब्रेकर भी है.’’ मेरे पति हाजिरजवाब हैं. उन्होंने कहा कि तुझे तो पता है यहां स्पीड ब्रेकर है, बस वाले को थोड़े ही पता है कि यहां बे्रकर है.’’ इस बात पर सभी बिना हंसे नहीं रह सके.

आशा शर्मा, बूंदी (राज.)

स्कूल जाते वक्त एक लड़का मुझे बहुत परेशान करता था. यह बात मेरी सभी सहेलियां जानती थीं. हम सभी साइकिल से स्कूल जाया करते थे. एक दिन स्कूल जाते समय उस ने मेरे हाथ में जोर से काट लिया. मैं तेजी से चिल्लाई. फिर क्या था, मेरी सहेली ने उस का हाथ कस कर पकड़ लिया. यह हम साइकिल चलाते हुए कर रहे थे. वह घबरा गया. आई एम सौरी कह कर दोबारा ऐसा न करने की दुहाई देने लगा. परंतु मेरी सहेली ने उस का हाथ न छोड़ा. वह कहने लगी कि आज हम तुम्हारे घर चलेंगे और तुम्हारे मम्मीडैडी को बताएंगे कि किस तरह से तुम हमें परेशान करते हो. इस तरह से साइकिल चलातेचलाते हम काफी दूर निकल आए. इसी बीच एक ट्रक आ गया, हमें उसे छोड़ना पड़ा. परंतु इस के बाद वह हमें कभी दोबारा नहीं दिखा.

प्रेमलता दिवाकर, कानपुर (.प्र.)

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