आज से 3 साल पहले मैं अपने पति के साथ अपने एक रिश्तेदार की बेटी की शादी में बेंगलुरु के पास किसी छोटे शहर में गई?थी. शादी सकुशल संपन्न होने के बाद हम ने ऊटी जाने का प्रोग्राम बनाया. उसी दिन हमारी शादी की सालगिरह भी थी. सभी रस्म निबटने के बाद हम ऊटी के लिए निकले, हालांकि निकलने में कुछ देर हो गई. कोयंबटूर से ऊटी के लिए हम ने एक टैक्सी रिजर्व कर अपनी यात्रा आरंभ की.

अंधेरा हो चुका था, पहाड़  की घुमावदार सड़कें और टैक्सी की तेज गति की वजह से काफी रोमांच अनुभव हो रहा था. हम चलते जा रहे थे कि अचानक कुछ जंगली हाथी हमारी टैक्सी के सामने बीच सड़क पर दिखाई दिए. मेरे तो डर के मारे प्राण ही निकलने वाले थे. मेरे पति मुझे हिम्मत दिलाते रहे. धीरेधीरे हाथियों का झुंड बिना हमें नुकसान पहुंचाए सड़क से उतर कर जंगलों में चला गया. हम ने अपनी आगे की यात्रा सकुशल पूरी की. आज भी इस?घटना को याद कर रोंगटे खड़े हो जाते हैं.

सुधा अग्रवाल, लखनऊ (उ.प्र.)

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जून माह में मैं ट्रेन से सपरिवार रतलाम से भोपाल आ रहा था. मेरा आरक्षण था. भोपाल में मु?ो इलाहाबाद के लिए दूसरी टे्रन पकड़नी थी. हमारी टे्रन नागदा स्टेशन से चल कर एक छोटे स्टेशन उनहील पर रुकी तो वहां से मावा का कारोबार करने वाले कुछ लोगों ने अपनीअपनी मावा बास्केट आरक्षण कोच की खिड़कियों पर लोहे के रौड के जरिए टांग दीं और सभी लोग उसी कोच में सवार हो गए.

मैं ने और पत्नी ने इस का विरोध किया तो वे अभद्रता पर उतर आए. किसी तरह मैं ने उस समय हालात पर काबू पाया. लेकिन आगे के लिए मेरी पत्नी ने रेलवे की हैल्पलाइन पर फोन कर दिया. खैर, टे्रन जब 55 मिनट बाद उज्जैन स्टेशन पहुंची तो वहां महिला पुलिस के साथ पुरुष जवान भी मौजूद थे. उन लोगों को मेरा कोच तलाशने में समय लग गया, जबकि कोच और सीट नंबर मोबाइल नंबर के साथ बता दिया गया था. इस दौरान वे लोग टे्रन से उतर कर भाग गए.

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