अभियान जीवित रहेगा

मशहूर समाजसेवी और अंधविश्वासों के खिलाफ मुहिम चला रहे डा. नरेंद्र दाभोलकर की हत्या से उतनी हलचल हुई नहीं जितनी होनी चाहिए थी. ऐसा सिर्फ इसलिए हुआ कि आम लोग खुद अंधविश्वासों से दिमागी तौर पर बीमार हो जाने की हद तक आदी हो गए हैं. साबित यह भी हुआ कि धर्म, पाखंड और अंधविश्वासों के दुकानदार अब माफिया से भी ज्यादा खतरनाक हो गए हैं जिन्होंने पुणे के ओमकारेश्वर मंदिर के पास दाभोलकर की सरेआम हत्या कर जता दिया कि उन की दुकानदारी में आड़े आने का हश्र क्या होता है.

इन गुंडों का ईमानधरम केवल पैसा होता है जो जादूटोने, तंत्रमंत्र, भविष्यफल वगैरह से बगैर मेहनत किए आता है. इन का आतंक और खौफ इतना है कि कई बार तो लगता है कि इन्हें चढ़ावा नहीं हफ्ता दिया जा रहा है.

मनीष तिवारी के बेतुके विचार

सूचना एवं प्रसारण मंत्री मनीष तिवारी चाहते हैं कि पत्रकारों के लिए भी अखिल भारतीय स्तर की परीक्षा आयोजित कर उन्हें लाइसैंस प्रदान किए जाएं. पत्रकार बनने के लिए किसी शैक्षणिक योग्यता की अनिवार्यता न होना उतनी चिंता का विषय नहीं है जितनी मंत्रीजी गंभीरता से जता रहे हैं.

दरअसल, मनीष तिवारी को मीडिया उद्योग की मूलभूत संरचना का ज्ञान नहीं है वरना वे यह बेतुका सुझाव न देते. पत्रकार 2 तरह के होते हैं. पहले, स्वाधीन और दूसरे, पराधीन. दोनों ही पैसों के लिए प्रकाशक के मुहताज होते हैं. पत्रकारों के सैकड़ों संगठन हैं जो अपनी मांगों को ले कर अकसर किसी अज्ञात शक्ति के सामने हायहाय करते रहते हैं, दूसरी तरफ प्रकाशकों के अपने संगठन आईएनएस और इलना जैसे हैं, जो पत्रकार बनाते हैं, उन्हें रोजगार देते हैं, इसलिए शोषण भी अधिकारपूर्वक करते हैं. असल जरूरत प्रकाशकों पर लगाम कसने की है जो नेताओं और मंत्रियों को लाइसैंस देते हैं.

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