मेरी सहेली के भाई की शादी थी. बहुत दिनों से हम मिले नहीं थे. मैं ने सोचा, अच्छा मौका है इस बहाने गजाला से मुलाकात भी हो जाएगी और उस के भाई रेहान मीर की शादी में शिरकत भी कर लूंगी. एक दिन पहले मैं गजाला के घर पहुंच गई. उस दिन उबटन था, शाम को खूब हंगामा रहा. लड़के को हलदी लगाने के बाद सब लोग आपस में हलदी खेलने में लग गए. दूसरे दिन बरात उसी शहर में जानी थी. शाम को हम बरात ले कर दुलहन के घर की तरफ रवाना हो गए. एक मैरिजहोम में इंतजाम था. निकाह के बाद खाना हुआ. उस के बाद दुलहन हिना की विदाई हुई. हम लोग दुलहन ले कर घर पहुंचे. उन लोगों के यहां रिवाज है कि दरवाजे से कमरे तक दूल्हा दुलहन को गोद में उठा कर ले जाता है. दूल्हा थोड़ा हिचकिचा रहा था, जरा दुबलापतला था. दुलहन तंदुरुस्त थी. सारी औरतें और बड़ीबूढि़यां दूल्हे के सिर हो गईं कि तुम्हें तो दुलहन को गोद में उठा कर ही अंदर ले जाना पड़ेगा. ‘मरता क्या न करता’ कहावत के अनुसार दूल्हे ने उसे गोद में उठाया. शोर, चीख, हंसी से माहौल गूंज उठा. इस हंगामे से दूल्हा और घबरा गया, थोड़ी दूर चलने के बाद दुलहन उस के हाथों से छूट कर नीचे गिर गई. दूल्हे की चाची दुलहन को खड़ा कर उस का हाथ पकड़ कर धीरेधीरे उस के कमरे में ले गईं. जब दुलहन जरा संभली तो उसे एहसास हुआ कि उस के घुटने में दर्द है क्योंकि घुटना जमीन से टकराया था. दूसरे दिन रिसैप्शन था, उस में भी वह लंगड़ा कर चल रही थी. 15-20 दिनों तक दवाइलाज के बाद दर्द ठीक हुआ. एक बेहूदा रस्म को निबाहने के चक्कर में दुलहन को कितनी तकलीफ उठानी पड़ी.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...