कभीकभी 2-4कदम साथ चलने वाला अनजान राही भी आप के जीवन में मुसकान बिखेर देता है. मैं लखनऊ में थी. सुबह 10 बजे के करीब गोरखपुर से छोटे भाई आलोक का फोन आया.
‘सुधांशु कहां है?’’
‘‘बैंक गए हैं. क्यों? क्या बात है?’’
‘‘क्या कोई घर से बाहर गया है?’’
‘‘हां, शीतांशु दिल्ली गया है. कुछ बताओ तो, क्या हुआ है?’’ मैं घबरा गई.
‘‘आप घबराइए मत. सुनिए, मैं जो नंबर आप को बता रहा हूं उस नंबर से दिल्ली से फोन आया था कि आप के रिश्तेदार का बैग छूट गया है. इसलिए वे मु से बात कर लें.’’
मैं ने शीतांशु को फोन किया और पूछा, ‘‘तुम्हारा सब सामान तुम्हारे पास है?’’
शीतांशु ने अपना सामान चैक कर के बताया कि उस का लैपटौप वाला बैग नहीं है. मैं ने आलोक द्वारा बताए गए फोन नंबर को दे कर कहा कि इस नंबर पर बात कर लो. शीतांशु ने फोन पर बात की, और फोन पर बताई जगह पहुंच गया. वहां बस के ड्राइवर ने उसे बैग दे दिया. बैग में लैपटौप के साथ जरूरी कागज, डायरी और जरूरी सामान भी था.
बैग मिलने से शीतांशु के होंठों पर जो मुसकान फैली थी वह उस अनजान ड्राइवर के फोन का कमाल था जो उस ने बैग की डायरी से नंबर ले कर आलोक को किया था.
रेणुका श्रीवास्तव, लखनऊ (उ.प्र.)
मैं पति के साथ साप्ताहिक हाट में गई थी. भीड़ में लोग एकदूसरे को धक्का दे कर आगे बढ़ रहे थे. हम भी एक हाथठेले के पास सब्जी खरीदने के लिए खड़े हो गए. तभी एक सज्जन स्कूटर से तेज हौर्न बजाते हुए आए और धक्का दे कर आगे बढ़ने का प्रयास करने लगे. यह देख कर मेरे पति कहने लगे, ‘‘यहां पर लोगों के पैदल चलने की जगह नहीं है और आप हैं कि गाड़ी ले आए,’’ इस पर वे सज्जन झगड़ने लगे. मैं ने पति को आगे ले जाना ही बेहतर समा.