मई (द्वितीय) अंक में प्रकाशित अग्रलेख ‘राजनीति का जातीय गणित’ पढ़ा. यह लेख देश का अखंड नारा ‘अनेकता में एकता’ कितना खोखला है, दर्शाता है. राजनीति के अंतर्गत ‘वादे हैं वादों का क्या’ के प्रत्युत्तर में सौ सुनार की एक लोहार की वाली कहावत को चरितार्थ करते हुए जनता कहेगी जो वादा किया वह निभाना पड़ेगा. इस बार जनता ने वोटों की भीख नहीं दी है बल्कि आशा व विश्वास की थाली अच्छे दिन के आने की आशा में योग्य नेताओं को थमा दी है.
अब यह देखना है कि नई सरकार जनता की उम्मीदों पर कितना खरा उतरती है.
रेणु श्रीवास्तव, पटना (बिहार)
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