सरित प्रवाह, जुलाई (प्रथम) 2014

‘सरकार की सकारात्मक शुरुआत’ शीर्षक से प्रकाशित संपादकीय में आप के विचार पढ़े. दरअसल, आने वाले दिन तय करेंगे कि नई सरकार क्या करती है. सरिता के माध्यम से प्रधानमंत्री से मेरी गुजारिश है कि वे यथार्थ के धरातल पर खड़े हो कर देश की समृद्धि का तानाबाना बुनें. सरकारी तंत्र की आतंकवादी एवं उन्मुक्त कार्यवाहियों से आम आदमी कितना त्रस्त है यह किसी से छिपा नहीं है. शारीरिक अपंगता व वरिष्ठता का कोई लिहाज नहीं. करोड़ों डकार जाने वाले शासकीय तंत्र वाले देश में आम आदमी को मामूली गलती का गंभीर खमियाजा भुगतना पड़ता है. प्रधानमंत्री का सचिवों से सीधा संपर्क रखना फिलहाल प्रशंसनीय कदम है. विपक्षी दल एकजुट हो कर देशहित व जनहित के कार्य करने के बदले अपनी हार पर तिलमिलाते हुए खिसियानी बिल्ली की तरह नुक्स निकाल कर दोषारोपण करते हैं. अकर्मण्यता से ग्रस्त देश की एक अच्छीखासी आबादी को कर्मठता की अहमियत का एहसास कराता आप का संपादकीय सटीक है. दुख की बात यह है कि यहां धर्मनिरपेक्षता ने ही अकर्मण्यता को प्रश्रय दे रखा है जहां कर्म करने के बदले फल प्राप्ति के केवल गुर सिखाए जाते हैं जो राष्ट्र की उन्नति के रास्ते में कांटे ही बोते हैं क्योंकि कर्मठता ही समृद्धि की जननी होती है. जिस देश के वासी जितने कर्मठ हैं वह देश उतना ही उन्नति के शीर्ष पर है.

रेणु श्रीवास्तव, पटना (बिहार)

* संपादकीय टिप्पणी ‘सरकार की सकारात्मक शुरुआत’ में आप ने सरकार की 1 महीने की नीतियों को सही बताया है. मैं चाहता हूं इसी प्रकार विश्लेषण करते रहिए. दरअसल, देश का भला चाहने वाले केवल वे लोग हैं जो न तो कांगे्रसी हैं, न ही भाजपाई और न ही अन्य किसी राजनीतिक पार्टी वाले, बल्कि वे हैं जिन्हें मतलब केवल जनता की भलाई से है. फिरोज गांधी नेहरू के दामाद होते हुए भी उन्हें गलत काम करने से सदैव रोकते थे. पूर्ण बहुमत मिलने के बाद जनता मोदी सरकार से यही उम्मीद करती है कि वह सत्ता में रहने तक वही फैसले ले जो पूरे देश और देशवासियों के भले के लिए हों, भले ही कुछ फैसले चाहे भाजपा को थोड़ा नुकसान ही पहुंचाएं क्योंकि भाजपा में भी कई गलत लोग हैं. भाजपा सरकार को चाहिए कि वह कांगे्रस के साथ बदले की भावना से न पेश आए. पिछली सरकार द्वारा नियुक्त किए गए गवर्नरों को हटाने की जरूरत नहीं है. हां, दागी पदाधिकारियों को बदला जा सकता है. इसी तरह ‘आधार कार्ड’ बनाने जैसी स्कीम को बेकार करार देना मुनासिब नहीं, बल्कि उसे और अच्छा बनाया जा सकता है. मुझे अभी तक के फैसलों से ऐसा लग रहा है कि वह अमीरों के लिए ज्यादा और गरीबों के लिए न के बराबर है. आप का यह कहना कि भविष्य में केवल 2 पार्टी ही हों ताकि मजबूत सरकार के साथ ठोस विपक्ष भी हो, बिलकुल सही है. चुनाव में पैसा भी कम लगेगा और वोटर के लिए आसानी होगी.

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