क्रूर परंपरा

जून (द्वितीय) अंक में लेख ‘धर्म की क्रूर परंपरा औरतों का खतना’ पढ़ा. अभी तक पुरुषों का खतना सुना था पर औरतों का खतना भी होता है, जानकर अजीब लगा. निश्चय ही यह धर्म की कू्रर परंपरा है. इस से साबित होता है कि धर्म के नाम पर प्रकृति प्रदत्त शरीर पर भी तरहतरह के अंकुश लगाए जाते हैं.

हजारों साल पुरानी अवैज्ञानिक नसीहतों द्वारा जबरदस्ती समाज का रहनुमा बनने का मोह ही यह करवाता है. इसलिए खाप पंचायतों और काजी लोगों के फैसले अजीब होते हैं. पैसे ले कर यदि संसद में प्रश्न पूछे जा सकते हैं तो उन से फतवे क्यों नहीं जारी हो सकते हैं? सरिता, ऐसे आलेख छाप पर अपनी परंपरा बनाए हुए है, जो सराहनीय है.

माताचरण पासी, देहरादून (उत्तराखंड)

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