सरित प्रवाह, मार्च (प्रथम) 2013
संपादकीय टिप्पणी ‘अपराध, अपराधी और मृत्युदंड’ पढ़ी. इस विषय पर आप ने काफी विस्तार में कानूनी प्रक्रिया और देश की सुरक्षा से जुड़े मुद्दों को समझाने की कोशिश की है. मेरा यह मानना है कि गुनाहगार को, चाहे वह आतंकवादी हो या रेपिस्ट, सजा तो मिलनी ही चाहिए. यदि फैसला ठीक और जल्दी सुना दिया जाता है तो इस का असर जरूर पड़ेगा और देश में अपराध कम होंगे. बच्चे को मांबाप गलती करने पर उसी समय सजा देते हैं, इसलिए बच्चा संभल भी जाता है.
कुछ अपराधों के लिए मृत्युदंड अत्यंत आवश्यक है. किसी की हत्या होने पर उस को वापस तो नहीं लाया जा सकता. किसी लड़की या औरत का रेप होने के बाद उस का जीवन तो बरबाद हो ही जाता है.
मानसिक रूप से वह हमेशा अपने को हीन समझती रहती है. अकसर मांबाप भी उस का साथ नहीं देते. ऐसे में बलात्कारी को सजाएमौत दिया जाना पीडि़त महिला के लिए बेकार साबित होता है. 16 दिसंबर के हादसे के बाद जिस से भी मेरी इस विषय पर चर्चा हुई है, सभी का यही कहना है कि अभी तक तो आरोपियों को फांसी लगा भी देनी चाहिए थी.
मैं आप की बात से सहमत हूं कि आपसी विवादों को सुलझाने के समाज ने काफी तरीके बना रखे हैं. लेकिन क्या ये तरीके अपने देश में कारगर साबित हुए हैं या हो सकते हैं? बातचीत करतेकरते हम ने इतना समय व्यतीत कर दिया कि अब हर अपराधी बलवान दिखाई देता है मेरी आप से विनती है कि हमें अब किसी भी हालत में अफजलों, कसाबों, वीरप्पनों जैसे अपराधियों के बचाव की सिफारिश नहीं करनी चाहिए.