सरित प्रवाह, मई (द्वितीय) 2013

संपादकीय टिप्पणी ‘कानून के हाथ’ बहुत ही सटीक है. इंटरनैशनल क्रिमिनल कोर्ट यानी अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय अब सही शक्ल लेने लगा है और नरेंद्र मोदी जैसे शासकों की नींद हराम कर सकता है, जो आज भी अपने गुनाहों के लिए अफसोस जाहिर करना तो दूर उन के सहारे अपना नया रास्ता खोज रहे हैं. आज एक ऐसे शासक का बहुमत के सहारे भी राज करना खतरे से खाली नहीं है जो नरसंहार के लिए जिम्मेदार है.

इस तरह के कानून का हमेशा स्वागत होगा जिस में जनता की भलाई छिपी हो. वैसे भी यह सत्य है कि कानून के हाथ लंबे होते हैं. अपराधी ने अगर अपराध किया है तो उसे दंड मिलना ही है. अब सरकारें अपनी जनता के खिलाफ सेना का इस्तेमाल नहीं कर सकतीं, यह खुशी की बात है कि अब जनता के प्रति अपराध एक हद तक ही किए जा सकते हैं.

सदियों से राजा जमीन, पैसे या धर्म के कारण लाखों की जान ले कर तालियां पिटवाते रहे हैं, हर देश की फौज का काम अपने आदमियों को मारना रहा है, मगर इस कानून के अमल में आने से ऐसे लोग बच नहीं सकेंगे. अगर पिछले 28 साल के दंगों के मामले फिर खुल जाएं तो आश्चर्य नहीं. ये वे घाव हैं जो समय के चलते भी नहीं भरते, न्याय की पट्टी ही उन्हें ठीक कर सकती है. हां, लकीरें फिर भी रह जाती हैं, चोट पर भी, दिलों पर भी.

 कैलाश राम गुप्ता, इलाहाबाद (उ.प्र.)

*

आप की टिप्पणी ‘कानून के हाथ’ पढ़ी. बहुत अच्छी लगी. नए कानून के तहत 2 देशों के शासकों को अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय द्वारा दंडित किए जाने से मानवजाति का भविष्य और उज्ज्वल दिखाई देने लगा है. अब बहुमत से चुन कर आए शासक भी नरसंहार करने के बाद बच नहीं पाएंगे. अभी तक यह बहाना था कि हमें जनता ने चुना है इसलिए हमारे अपराध क्षम्य हैं.

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