घटना मेरे बचपन की है जब प्रथम बार स्कूली शिक्षा के लिए मेरा दाखिला कक्षा 6 में हुआ था. स्कूल का सत्र शुरू हुए मात्र 12 दिन ही हुए थे.

इसी बीच एक दिन मेरी माताजी, जो (अब इस दुनिया में नहीं हैं) थोड़ाबहुत हिंदी पढ़ीलिखी थीं, मुझ से घर पर पढ़ाई करने के लिए कहने लगीं. जवाब में मेरा कहना था कि अभी तो मेरी किताबें भी बाजार से खरीद कर नहीं आई हैं तो मैं क्या पढ़ूं. इस पर वे समझाती हुई कहने लगीं कि क्लास में मास्टर साहब ने जो लिखवाया है वही याद कर लो.

मेरे द्वारा यह कहने पर कि क्लास टीचर ने तो अभी तक दैनिक टाइमटेबल ही लिखवाया है, वे जोर दे कर कहने लगीं कि इसी को अच्छी तरह याद कर लो.
माताजी का यह कहते ही वहां पर उपस्थित भैयाभाभी सहित सभी लोग खूब हंसे. माताजी को जब यह समझ आया तो उन का चेहरा देखने लायक था. बाद में वे भी हंसे बिना नहीं रह सकीं.
बी एस भटनागर, आगरा (उ.प्र.)

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भारतीय दूतावास, कुवैत में मेरा कार्यकाल समाप्त होने पर मुझे 1990 में स्थानांतरण होने पर भारतीय उच्चायोग, इस्लामाबाद जाना था. कुवैत में भारतीय समाज की एक संस्था ने मेरे विदाई समारोह में एक सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया. इस प्रकार के कार्यक्रम आमतौर पर भारतीय दूतावास के औडिटोरियम में पूर्वानुमति से आयोजित होते थे. ‘सुर संगम’ नामक इस संस्था के निदेशक अनुमति के लिए दूतावास के सूचना अधिकारी के पास पहुंचे और उन से कहा, ‘‘एक सांस्कृतिक कार्यक्रम के लिए 19 जुलाई को दूतावास का औडिटोरियम चाहिए.’’

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