फुजूलखर्च
मैं कई वर्षों से ‘सरिता’ की नियमित पाठिका हूं. आप की पत्रिका के माध्यमसे मैं देश में शादियों के दौरान होरहे फुजूल खर्चों की ओर ध्यानखींचना चाहती हूं. पटाखे, खानेपीने, कपड़ेगहनों में हम लाखों रुपए खर्च कर देते हैं.यदि इस खर्च का एक प्रतिशत भी किसी गरीब बच्चे की पढ़ाई में लगाएं, तो पैसे का सदुपयोग होगा. बैंडबाजे, खानेपीने में पैसा बरबाद करने के बजाय किसी गरीब की शादी में पैसा लगाने से नवदंपती के जीवन की शुरुआत किसी की दुआओं से होगी.
रानी भागचंदानी, पुणे (महाराष्ट्र)
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