दलित दारू पीता है और श्रेष्ठिवर्ग सुरापान करता है. दलित देसी ठेके पर नशे में मस्त हो कर चखना चबाते नेताओं को गाली बकता है. ऊंची जाति वाला भुने काजू के साथ वाइन के सिप करते गंभीर हो जाता है और उस के मुंह से अंगरेजी में मार्क्स, अरस्तु और पिकासो का दर्शन झड़ने लगता है. सार यह कि शराब हर कोई पीता है पर उस में भी धार्मिक, सामाजिक और आर्थिक स्तर पर भेदभाव साफसाफ दिखता है.

शराब को ले कर आरपीआई के मुखिया और न्याय मंत्री रामदास आठवले ने एक न्यायपूर्ण बात यह कह डाली कि दलित युवकों को देसी ठेके पर जाने के बजाय सेना में जा कर रम पीनी चाहिए. वहां अच्छा खाना भी मिलता है. खुद दलित होने के नाते रामदास बेहतर जानतेसमझते हैं कि वाकई, देश को दलितों की शहादत की जरूरत है. वे देश में जगहजगह पिटें, इस से तो अच्छा है कि दलित युवक सेना में जा कर लाइफ एंजौय करें. इस बाबत उन्हें आरक्षण भी देने की बात उन्होंने कह डाली.

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