जंतरमंतर लाइव

आम आदमी पार्टी की 22 अप्रैल की दिल्ली के जंतरमंतर पर आयोजित रैली वाकई ऐतिहासिक थी. पीपली लाइव के केंद्रीय पात्र किसान नत्था को पीछे पछाड़ते किसान गजेंद्र सिंह ने ऐसे खुदकुशी कर ली मानो टहलने निकला हो. इस लाइव सुसाइड पर खूब बवाल मचा पर गजेंद्र के परिवार पर पैसों की बारिश हो गई. हमदर्दी तो इतनी मिली कि उस के परिजन पैसों के साथसाथ आश्रितों को नौकरी और गजेंद्र को शहीद मानने तक का दरजा मांगने लगे.यह दरअसल लालच और निकम्मेपन की हद थी जिस में संवेदनाओं की हत्या राजनेताओं से ज्यादा गजेंद्र के परिजनों ने की. उस की मौत पर जम कर सौदेबाजी हुई और तमगे तक मांगे गए. बुद्धिजीवी और बेवकूफी की ऐसी कद्र हमारे देश में ही होना मुमकिन है.

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संजय का महाभारत

नरेंद्र मोदी 4 दिन के लिए विदेश क्या गए, इधर कोहराम सा मच गया. दिल्ली स्थित भाजपा मुख्यालय, और कई दिग्गज नेताओं के घर के बाहर दीवारों पर पोस्टर लग गए जिन में एक कवितानुमा गुजारिश थी कि संजय जोशी को वापस ले लिया जाए. भाजपा से निष्कासित संजय जोशी नरेंद्र मोदी के धुरविरोधी हैं इस के बाद भी वे घरवापसी के सपने देख रहे हैं तो बात हैरानी की है कि उन की इतनी जुर्रत कैसे हुई. बवाल मचा जिस पर मोदी तो कुछ नहीं बोले लेकिन संजय जोशी ने जरूर मोदी को अपना नेता मानने का एहसान सा कर डाला. मानोअब तक मोदी अधूरे और अपूर्ण नेता थे. मोदी, जोशी से किस हद तक चिढ़ते हैं, इस का अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि जोशी के जन्मदिन पर बधाई वाले पोस्टर में उन का नाम, फोटो होने के चलते केंद्रीय राज्यमंत्री श्रीपाद येस्सो नाईक को खासी फटकार पड़ी थी. इन मामलों से कुछ लोग कयास लगा रहे हैं कि भाजपा के भीतर गुटबाजी शुरू हो गई है.

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भक्ति मार्ग

खुद को काबू में रखने के साथसाथ कामयाब नेता वह होता है जो अपने विरोधी को उकसाने की कला में माहिर हो. कुछ दिन कथित अज्ञातवास में गुजारने के बाद राहुल गांधी देश वापस आए तो सीधे केदारनाथ जा पहुंचे जहां उन्होंने शंकर से मांगा कुछ नहीं. न शादी की मन्नत की और न ही प्रधानमंत्री बन जाने की मंशा जताई. राहुल गांधी का केदारनाथ जाना दरअसल नरेंद्र मोदी को उकसाने की कोशिश थी जो आज नहीं तो कल रंग जरूर लाएगी. गांवदेहात से लोग तीर्थ करने के लिए इसलिए नहीं भागते कि इस से पुण्य या भगवान मिलता है बल्कि इसलिए जाते हैं कि फलां गया था. ये धार्मिक पाखंड शीर्ष स्तर तक फैले हैं, इस खर्चीली मानसिकता का कोई इलाज भी नहीं है जो हर स्तर पर पंडावाद को बढ़ावा देती है.

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पनाह चाहिए

कोई दूसरा देश पनाह दे तो उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ मंत्री आजमखान देश छोड़ने को तैयार हैं. कोई आंधीतूफान नहीं आया, हाहाकार नहीं मचा था. हुआ यह था कि रामपुर के 80 वाल्मीकि परिवार सांकेतिक रूप से टोपी पहन कर मुसलमान बन गए तो शक की सुई आजम खान की तरफ घूमी क्योंकि रामपुर में उन की तूती बोलती है. आमतौर पर विदेशों में पनाह कलाकार, साहित्यकार और अभिनेता किस्म के लोग लेते हैं क्योंकि उन के पीछे कट्टरवादी पड़ जाते हैं पर इधर समीकरण उलट हैं. एक कट्टरवादी नेता ही देश छोड़ने को तैयार है. आजम खान देश में रहें या विदेश में, किसी की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ना लेकिन जो 80 परिवार मुसलमान बने उन पर से वाल्मीकि यानी देशी भाषा में मेहतर, भंगी होने का ठप्पा नहीं हटने वाला. फर्क इतना है कि अब वे मुसलमान वाल्मीकि कहलाने लगेंगे.      

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