शुरूशुरू में तो वाकई लोगों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बात मन लगा कर सुनी थी पर धीरेधीरे वह टीवी धारावाहिकों जैसी उबाऊ होती चली गई. ऐसे में अब लोगों ने अपने कान रेडियो से हटाने शुरू कर दिए. हालत यह है कि ‘मन की बात’ सुनी नहीं, बल्कि प्रसारण के दूसरे दिन अखबारों में सरसरी तौर पर पढ़ ली जाती है.

मन की बात के पिछले एपिसोड में प्रधानमंत्री ने आपातकाल का जिक्र कर डाला तो आम और खास दोनों तरह के लोग चौकन्ने हो उठे. कुछकुछ बुद्धिजीवियों को लगता है कि देश में अभी अघोषित आपातकाल लगा हुआ है, उन की जबान पर पहरेदारी है. देश में भय और आतंक का माहौल है. ऐसे में आपातकाल का स्मरण किया जाना ‘शोले’ फिल्म के उस डायलौग को दोहराने जैसी बात है कि ‘सो जा नहीं तो गब्बर आ जाएगा.’ इसी डर के चलते मन की बात के ठीक पहले 5 दर्जन से भी ज्यादा रिटायर्ड आईएएस, आईपीएस अधिकारियों द्वारा प्रधानमंत्री को लिखे खुले पत्र को भाव नहीं मिला था जिस में उन्होंने इस कथित आपातकाल का जिक्र किया था.

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