‘‘अरे बाजार आ ही गए हैं तो पूरे हफ्ते की सब्जी खरीद लेते हैं. रोजरोज की खिचखिच खत्म,’’ मैं बोली तो पति ने जवाब दिया, ‘‘दिक्कत क्या है? मैं रोज ताजी सब्जी लाता हूं.’’

मैं चिढ़ कर बोली, ‘‘जब रोजरोज सब्जी ही लानी है तो फ्रिज तो बेकार ही हुआ. फ्रिज तो सभी चीजों को फ्रैश रखता है.’’

मेरी बातों को नजरअंदाज करते हुए पति बोले, ‘‘देखो, मैं रिटायर्ड हूं. रोज सब्जी खरीदने जाता हूं तो 4 लोगों से मिलता हूं, उन के हालचाल पता चलते हैं. किसी को कोई तकलीफ, जरूरत हो तो पता चलता है, जुड़ा रहता हूं समाज से. पैदल जाता हूं, तो इस बहाने मेरी सैर भी हो जाती है. ताजी लाओ, ताजी बनाओ. स्टोर करने का झंझट खत्म.’’

पति की ताजी सब्जी का फंडा मेरी समझ में आ चुका था. ये सब्जी लाने के बहाने समाज से जुड़ कर खुद भी खुश रहते हैं और मैं भी.

रेखा सिंघल

*

कुछ महीनों से मैं अमेरिका में हूं. वैसे तो मेरा बेटा या बहू ही दोनों बच्चों को सुबह स्कूल छोड़ते हुए औफिस चले जाते हैं, पर एक दिन बेटा और बहू दोनों को सुबह कुछ पहले ही निकलना था, तो बेटे ने बच्चों से कहा कि आज तुम लोगों को दादाजी स्कूल ड्रौप कर देंगे.

मेरे पति कभीकभी बच्चों को सुबह ड्रौप कर देते हैं या कभी दोपहर बाद उन्हें पिक भी कर लेते हैं. उस दिन नई बीएमडब्लू कार घर पर थी. मौसम अच्छा था, कार की छत खोल कर उसी गाड़ी से निकल पड़े. ये बच्चों को स्कूलगेट तक छोड़ने के लिए उतर गए, गेट बिलकुल पास ही था. पर जब ये लौटे तो कार की छत बंद थी, फोन और चाबी अंदर रह गई, इंजन औन था.

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