जीवन का मेरा हर वह पल सुनहरा हो जाता है जिस में पापा मेरे साथ होते हैं. मध्यवर्गीय परिवार से होते हुए भी उन्होंने मेरी हर मांग को पूरा किया.
15 वर्ष की छोटी सी उम्र में मु झे किडनी की बीमारी हो गई जिस कारण मैं शारीरिक रूप से कमजोर हो गया और मेरी पढ़ाई रुक गई.

मैं बुरी तरह से मानसिक अवसाद से घिर गया. तब पापा ने ही मु झे अवसाद से बाहर निकाला और अपनी बीमारी से लड़ने के लिए व फिर से पढ़ाई शुरू करने के लिए प्रोत्साहित किया. उन के इन शब्दों, ‘बेटा, हर इंसान के जीवन में संघर्ष होता है. शायद तुम्हारे जीवन में कुछ ज्यादा ही संघर्ष हो पर उन से घबराना नहीं बल्कि डट कर मुकाबला करना. तुम्हें अपनेआप को साबित करना है.’ ने मेरा मनोबल बढ़ाया. उन्हीं के कारण मैं ने अपनी बीमारी को सकारात्मक रूप में लेते हुए अपनी पढ़ाई शुरू की. हाईस्कूल, इंटर और फिर गे्रजुएशन कंप्लीट किया.

पर गे्रजुएशन के बाद मेरी हालत और बिगड़ी व आगे जीवित रहने के लिए डाक्टर ने ‘किडनी प्रत्यारोपण’ की सलाह दी. तब पापा ने ही 57 वर्ष की उम्र व उच्च रक्तचाप होते हुए भी अपनी एक किडनी दे कर मु झे फिर एक नया जीवनदान दिया.

औपरेशन के ठीक 1 माह बाद जब मैं पापा से मिला व हमारी नजरें एकदूसरे से मिलीं तब उमड़ते भावों, छलकते आंसू, असीम सुख की अनुभूति, सच्चे आनंद का जो एहसास हुआ उसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता.
तब पापा ने मु झे आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होने की सलाह दी ताकि मैं किसी पर बो झ न बनूं. मैं कैरियर संवारने में लग गया और पापा मेरा आत्मविश्वास बढ़ाते रहते.
आज मैं पापा के प्यार, उन की सलाह, नसीहतों के साथ जीवन की नई चुनौतियों को पार करने व कैरियर बनाने में जुटा हूं.
सौरभ श्रीवास्तव, लखनऊ (उ.प्र.)

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