मेरे पापा नेकदिल, बहुत जिम्मेदार, स्पष्टवादी एवं सत्यप्रिय इंसान थे. सभी लोग उन्हें अजातशत्रु कहते थे. हम दोनों बहनों को उन्होंने अच्छे संस्कार दिए. आज उन्हीं की बदौलत हम पढ़लिख कर स्वावलंबी हैं.  जीवन के हर मोड़ पर, जिस के पिता साथ हों, वह इंसान सचमुच खुशहाल होता है. उन्होंने शिक्षा विभाग में 38 वर्ष अध्यापन कार्य किया. अध्यापन उन का शौक था. उन की अंगरेजी बहुत अच्छी थी. हर कठिनाई, हर समस्या में जो पिता अपने बच्चों का हाथ थामे रहे, उस से बढ़ कर नेक इंसान भला कौन हो सकता है. उन्होंने सिर्फ अपनी ही दोनों बेटियों पर स्नेह नहीं लुटाया, बल्कि अपने सभी छोटेबड़े भायों, भतीजी, भतीजों को भी खूब प्यार करते थे.

उन के भतीजे कहते हैं कि मेरे चाचा तो बहुत रौयल थे. उन को संसार छोड़े 8 वर्ष हो चुके हैं लेकिन ऐसा महसूस होता है कि वे अभी भी हमारे साथ हैं.

- मायारानी श्रीवास्तव, मिर्जापुर (उ.प्र.)

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मेरे जिंदादिल, कर्मठ पापा अचानक कूल्हेजांघ के मल्टीपल फ्रैक्चर की चपेट में इतनी बुरी तरह आए कि डाक्टरों ने औपरेशन के लिए हाथ खड़े कर दिए. उन की दुनिया पलंग पर सिमट कर रह गई. चलनाफिरना बिल्कुल बंद, ऐसे में मैं ने छुट्टी ले कर पूरा समय उन्हें देने का निर्णय किया. उन की दवा व देखभाल कर के मुझे जितना सुख मिलता उस से अधिक दुख उन की विवशता की पीड़ा से हरदम डबडबाई आंखें देख कर होता था. दूसरों के चार काम कर के खुशी बटोरने वाले लोगों का इस तरह दूसरों पर निर्भर हो जाने के दर्द का अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है.

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