हमारे समाज में आज भी बहुत सी कुरीतियां फैली हैं. मुझे उसी रास्ते से गुजरना पड़ता है जिस पर से मृत शरीर को ले कर जाते हैं. कभीकभी रास्ते में बहुत से खीलमखाने बिखरे हुए मिलते हैं. परंपरानुसार लोगों का यह विश्वास है कि ऐसा करने से वृद्ध लोगों की आत्मा को शांति मिलती है. ऐसा कर के वे वृद्ध व्यक्ति को सम्मान दे रहे हैं. यह कैसी शांति व सम्मान है? खीलमखाने तो सड़क पर बिखरे पड़े रहते हैं, राह चलते व्यक्तियों के पैरों से वे कुचले जाते हैं. वे बाद में किसी मतलब के नहीं रह जाते.

– संतोष शर्मा, मोदी नगर (उ.प्र.)

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‘मंगल’ शब्द वैसे तो शुभ होने से जुड़ा है लेकिन शानू के अभिभावक उस की शादी किसी मांगलिक लड़के के साथ ही करना चाहते थे, अन्यथा वे मानते थे कि कुछ अनर्थ हो जाएगा. सीए करने के बाद शानू मुंबई में एक अच्छी कंपनी में काम करने लगी थी. वह समयसमय पर घर आती रहती थी. अंधविश्वास के कारण उस के मातापिता को बिरादरी का ही सीए लड़का जो मांगलिक भी हो, मिलना मुश्किल होता जा रहा था. उम्र कहां रुकती है, 35 वर्ष के बाद मातापिता ने हार मान कर कहा, चलो, अब समझौता करना पड़ेगा अन्यथा शानू कुंआरी ही रह जाएगी. आज शानू 5 सालों से सीए लड़के, जो मांगलिक नहीं है, के साथ शादी कर के बड़े आराम का जीवन काट रही है. कोई अनर्थ नहीं हुआ. अभिभावकों के अंधविश्वास के चक्कर में वह 40 की भी हो कर कुंआरी ही रहती. उस के मातापिता को अब एहसास हो गया कि जमाना कितना तरक्की कर रहा है और वे कितने पीछे रह गए.

– तरुणा मालपाणी

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हमारे यहां रिवाज है कि शादी के समय जब दूल्हा द्वारपूजा से शादी के मंडप तक आता है, तो उसे पैदल नहीं आना होता, उस का बड़ा भाई गोद में उठा कर लाता है. मेरी बहन की शादी में उस के सब से बड़े जेठ को यह काम करना था. उन का कुछ महीने पहले ही स्कूटर से ऐक्सिडैंट हुआ था. शादी के दिन वे माने नहीं और जिद पर अड़ गए कि अपने छोटे भाई को वे ही गोद में उठा कर ले जाएंगे. बस, फिर क्या था, भाई को उठा कर ले जाने की खुशी में उन्हें यह ध्यान ही नहीं रहा कि 5 मिनट के रास्ते में उन की कमर का क्या हाल हुआ. डाक्टरी जांच पर पता चला कि वे स्लिप डिस्क के शिकार हो गए हैं और 3 महीने का बैडरैस्ट करना पड़ेगा.

वाह री, हमारी बेडि़यां, 21वीं सदी में तो तोड़ दे इन्हें हमारा समाज, वरना बैठेबिठाए कितने कष्ट झेलने पड़ जाते हैं.

– श्वेता मिश्रा, गुड़गांव (हरि.)

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