मेरे पापा स्वभाव से बहुत सख्त थे. घर के सभी सदस्य उन से कुछ भी कहने से डरते थे. मुझे जो भी बात करनी होती थी, वह मैं पहले अपने बड़े पापा (ताऊजी) से कहती, फिर बड़े पापा मेरे पापा से वह बात कहते थे. पर पापा जितना गुस्सा करते थे उतना ही हम सब बच्चों से प्रेम भी करते थे. मेरी शादी जब तय हुई तो मुझे पापा के प्यार का पता चला. मेरी शादी बनारस में तय हुई. मेरे पति उस समय लखनऊ में पोस्टेड थे. पापा यही सोच कर खुश थे कि बनारस और लखनऊ, दोनों शहर जबलपुर के पास हैं. रात में ट्रेन से चलेंगे तो सुबह मेरे पास पहुंच जाया करेंगे. कोई परेशानी भी नहीं होगी. पर सगाई के एक महीने बाद ही मेरे पति की पोस्टिंग कोचीन (केरल) हो गई.

पापा को यह खबर पता चली तो वे रो पड़े. कहने लगे, ‘‘अब तो मेरी बेटी बहुत दूर हो जाएगी. पता नहीं, शादी के बाद कब तुम्हारे यहां आना होगा. ट्रेन भी हफ्ते में एक ही दिन चलती है. बनारस, लखनऊ जान कर मैं बहुत खुश था. वहां अपने रिश्तेदार भी थे. कोचीन तो एकदम अनजान शहर है. जानेआने का 2 दिन का सफर है. अब तो सारे समय तुम्हारी चिंता लगी रहेगी.’’ ये सारी बातें कर के पापा खूब रोए. तब मुझे अपने प्रति पापा के प्यार और चिंता का एहसास हुआ. आज पापा हमारे बीच  नहीं हैं पर उन का प्यार मेरे साथ हमेशा रहेगा.

- मनीषा अविनाश, द्वारका (न.दि.)

*

मेरी नईनई शादी हुई थी. मेरे ससुराल वाले दहेज के विरुद्ध थे अत: मेरा विवाह सादे ढंग से, दहेज रहित हुआ था. विवाह के बाद लखनऊ आवास विकास परिषद में स्ववित्त पोषित भवनों के लिए विज्ञापन निकला था. मैं ने अपने पति से सलाह कर भवन के लिए आवेदन कर दिया. ड्रा निकाला तो मेरा नाम आ गया. मकान के लिए 88 हजार रुपए की त्रैमासिक किस्त भरनी थी. हम लोगों के पास कुछ पैसे कम पड़ रहे थे. सो, हम ने मकान न खरीदने का मन बनाया.

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