ग्वालियर में हर वर्ष व्यापार मेला लगता है. देश के विभिन्न भागों से लोग आ कर दुकानें लगाते हैं. मेले में सभी तरह की चीजें मिलती हैं. मैं अपनी बेटी और सहेलियों के साथ मेले में गई. सामान खरीदतेखरीदते हम लोग कश्मीरियों की दुकान पर पहुंचे और सूटशाल वगैरह देखने लगे. मैं ने अचानक दुकानदार से पूछा, ‘‘भाई, कश्मीर में बाढ़ आने के बाद अब कैसे हालात हैं?’’ यह सुनते ही वह भौचक्का हो कर मुझे देखने लगा. मैं ने उस से कहा, ‘‘भाई, तुम कश्मीर के नहीं हो?’’

उस ने कहा, ‘‘कश्मीर का ही हूं.’’

मैं ने कहा, ‘‘आप इतना सोच कर जवाब क्यों दे रहे हो?’’

वह बोला, ‘‘मेले में बहुत से लोग आए, सामान खरीदा और चले गए लेकिन किसी ने वहां के हालचाल नहीं पूछे.’’

मैं अवाक् उस को देखते हुए बस इतना ही कह पाई कि भाई, तुम और हम अलगअलग नहीं हैं.

- अर्चना राठी, ग्वालियर (म.प्र.)

*

मेरी बड़ी बहन मेरे जीजाजी के साथ सुबहसुबह घूमने निकलीं. जीजाजी दुबलेपतले जबकि दीदी मोटी हैं. दोनों थोड़ी दूर ही गए थे कि एक लड़का तेजी से दौड़ता हुआ दीदी के पीछे से आया और उस ने उन के गले में पड़ी सोने की चेन खींच ली. दीदी जोर से चिल्लाईं और लड़के को धक्का भी दिया. जीजाजी ने पलट कर देखा तो दीदी चिल्ला रही थीं कि वह लड़का मेरी चेन खींच कर भाग रहा है. जीजाजी और दीदी दोनों उस के पीछे दौड़े. जीजाजी दुबलेपतले थे, वे दीदी के आगे निकल गए. दीदी तब भी चिल्लाए जा रही थीं कि चोर उन की चेन खींच कर भाग रहा है. आसपास के लोग उन की आवाज सुन कर दौड़े और उन्होंने आगेआगे भाग रहे जीजाजी को पकड़ लिया क्योंकि उस समय सड़क पर वही अकेले भागते दिख रहे थे. बेचारे जीजाजी बारबार बोलते रहे, ‘मैं चोर नहीं हूं, मैं चोर नहीं हूं.’ पर उस समय उन की सुनता कौन? दोचार थप्पड़ उन्हें पड़ ही गए जब तक कि दीदी हांफतीदौड़ती वहां न आ गईं. उन्होंने आ कर उन्हें छुड़ाया. चोर तो भाग ही चुका था. रोतेकलपते दोनों घर आए. मजा तो तब आया जब दीदी बाथरूम से लौटीं तो जोरजोर से हंस रही थीं, चेन उन के हाथ में थी जो चोर ने खींची जरूर थी पर शायद दीदी के विरोध के कारण टूट कर कपड़ों में ही रह गई थी. सब लोग खुश हो गए सिवा जीजाजी के. बेचारे बिना बात पिट जो गए थे.

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