बात उस वक्त की है जब मेरी बेटी ढाई साल की थी. हम उसे रंग, फूल, फल, जानवर आदि पहचानना सिखा रहे थे. उसे यह पता था कि हाथी स्लेटी रंग का होता है. उन्हीं दिनों हम वैष्णो देवी से लौट कर जम्मूतवी ऐक्सप्रैस से वापस लौट रहे थे. ट्रेन एक पुल पर से गुजर रही थी. नीचे पानी देखते हुए बेटी एकदम से बोली, ‘‘मम्मी, देखो छोटेछोटे एलिफैंट.’’ मैं ने देखा तो भैंसें थीं जो हम ने कभी उसे किसी किताब में दिखाई थीं. दोनों का ही रंग स्लेटी होता है. उस की यह बात सोच कर आज भी खूब हंसती हूं और खुशी भी होती है कि छोटी सी बच्ची ने कितने ध्यान से देखा.

- रश्मि गुप्ता, वडोदरा (गुज.)

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हमारे विवाह की 35वीं वर्षगांठ थी. मैं और पति फिल्म देखने के लिए जाने की तैयारी कर रहे थे. मेरा 5 वर्षीय पोता शील बोला, ‘‘आप कहां जा रहे हैं?’’ मैं ने कहा, ‘‘बूआ की तबीयत ठीक नहीं, उन्हें देखने अस्पताल जा रहे हैं.’’ इस पर वह भी साथ अस्पताल चलने की जिद करने लगा. तब मैं ने समझाया कि अस्पताल में छोटे बच्चे नहीं जाते. मेरी बात सुन कर वह गुस्सा हो गया और बोला, ‘‘दादी, आप अच्छी नहीं हो.’’ थोड़ी देर बाद वह फिर आया, फिर से गुस्से में बोला, ‘‘दादी, क्या कभी मेरी मम्मी बीमार नहीं होंगी, अस्पताल में ऐडमिट नहीं होंगी. तब मैं आप को ले कर अस्पताल नहीं जाऊंगा,’’ उस की ऐसी बातें सुन कर हम सब हंसी से लोटपोट हो गए.

- भगवती टहिल्यानी, कोटा (राज.)

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हमारी पोती अवनी की उम्र पौने 5 साल है. पर वह बातें अपनी उम्र से भी कई वर्ष बड़ों के बराबर करती है. कभीकभी तो ऐसी बातें करती है कि दूसरों के सामने अजीब स्थिति हो जाती है. हमारे घर में सफेदी और पेंट का काम चल रहा था. अवनी ने पेंट करने वाले व्यक्ति से कहा, ‘‘अंकल, मुझे भी पेंट करने दो.’’

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