हमारे पड़ोस में एक बुजुर्ग दंपती रहते थे. उन के एक ही बेटा था जो अमेरिका में रहता था. एक दिन पता चला कि उन बुजुर्ग व्यक्ति की पत्नी की मृत्यु हृदयगति रुकने से हो गई. बेटा, बहू अमेरिका से आए, तेरहवीं तक किसी तरह रुके. बेटे ने जाने से पहले अपने पिता से अमेरिका चलने के लिए कहा. लेकिन उन बुजुर्ग ने जाने से इनकार कर दिया. वे बोले कि यहां अपना मकान है, आसपास अच्छे लोग हैं, मुझे यहां अच्छा लगता है, मन लगा रहेगाबेटाबहू के जाने के बाद उन बुजुर्ग को बहुत खराब लगने लगा. उन का मन नहीं लगता था. दिन तो जैसेतैसे कट जाता पर रात काटना मुश्किल हो जाता. बच्चे मोबाइल पर हालचाल लेते रहते थे. पर जैसेजैसे समय बीतता गया, बच्चों के फोन आने कम हो गए. वे मोबाइल पर घंटी का इंतजार ही करते रहते. एक दिन मैं विद्यालय से लौट रही थी. उन्होंने मुझे अपने पास बुलाया और बोले, ‘‘बेटी, देखो मेरा मोबाइल तो ठीक है?’’ मैं ने मोबाइल देखा तो वह एकदम ठीक था. मोबाइल पर कौल की तो घंटी भी सुनाई पड़ी. मैं ने उन से कहा, ‘‘चाचाजी, आप का मोबाइल एकदम ठीक है.’’ कुछ देर शांत रहने के बाद वे धीरे से बोले, ‘‘फिर मेरे बच्चों का फोन क्यों नहीं आ रहा है?’’ प्रश्न सुन कर मैं निरुत्तर थी.

उपमा मिश्रा, लखनऊ (उ. प्र.)

*

मैं अपनी पहली तनख्वाह से अपने पिताजी के लिए सफारी सूट का कपड़ा ले कर घर लौट रही थी. मन में बहुत खुशी हो रही थी. खुशी में सोचतेसोचते बस से उतर कर घर पहुंची तो मां ने पूछा कि कपड़ा कहां है? मुझे जैसे तब होश आया. मैं याद करने लगी कि आखिर कपड़े का पैकेट कहां छूटा होगा. फिर मुझे लगा कि शायद बस में ही छूट गया होगा. यह सोच कर कि पता नहीं, अब वह कपड़ा मिलेगा भी कि नहीं, मुझे रुलाई आने लगी थी. लेकिन अपने को नियंत्रित कर जल्दीजल्दी बस स्टौप, जहां मैं उतरी थी, के विपरीत तरफ जा कर खड़ी हो गई. सोच रही थी कि शायद बस जब वापस इस रास्ते से लौटेगी तो बस कंडक्टर और ड्राइवर से पूछ लूंगी.

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