वेंकैया बनाम वरुण
अजमल आमिर कसाब की फांसी गुजरे कल की बात हो गई है लेकिन वरुण गांधी का बयान भाजपा के गले की फांस बन गया है जिस में उन्होंने कहा था कि अब तक ज्यादातर फांसियां अल्पसंख्यकों यानी मुसलमानों और दलितों को ही क्यों हुई हैं. इस फांस को बगैर सर्जरी के हटाने की कोशिश वरिष्ठ मंत्री वेंकैया नायडू ने यह कहते की कि क्या फांसी में भी आरक्षण व्यवस्था लागू की जानी चाहिए? हर कोई जानता है कि मुद्दा या लड़ाई कसाब, दलित या फांसी नहीं बल्कि भाजपा के अंदर वर्चस्व की है. वरुण गांधी के कांग्रेसी संस्कार कभीकभी शब्दों और विचारों में प्रकट हो जाते हैं तो मूल भाजपाई तिलमिला उठते हैं. लेकिन वे कर कुछ नहीं पाते. इस की पहली वजह तो यह है कि वरुण मेनका गांधी के बेटे हैं. उन की गंभीरता और परिपक्वता को ले कर संशय बना ही रहता है. और दूसरी, उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव की आहट है. ऐसे में कोई उन से पंगा नहीं लेना चाहता.
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मैगी रिटर्न्स
मुंबई उच्च न्यायालय के फैसले से पहले ही केंद्रीय उपभोक्ता मामलों के मंत्री रामविलास पासवान ने अपनी यह उम्मीद सार्वजनिक तौर पर जता दी थी कि मैगी जल्द ही दुकानों पर लौटेगी. इस के बाद अदालत की सी भाषा का इस्तेमाल करते उन्होंने कहा था कि तथ्यपरक निष्कर्ष आने तक अनावश्यक हंगामा नहीं होना चाहिए. पासवान की आवाज में दम इस बात का भी था कि टैक्नोलौजी रिसर्च इंस्टीट्यूट ने अपनी जांच में मैगी को सुरक्षित पाया है. इस विज्ञापन रूपी बयान के कोई खास माने होते अगर योग गुरु बाबा रामदेव देसी मैगी बाजार में लाने का एलान न कर चुके होते. रामदेवरामविलास के संबंधों पर इस बयान का फर्क पड़ना तय है जिस की मध्यस्थता करते नरेंद्र मोदी को तैयार रहना चाहिए क्योंकि बात मैगी की कम मुनाफे की ज्यादा है.
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कोर्ट को बख्शें
तेजतर्रार डी के अरुणा साल 2014 तक आंध्र प्रदेश की जनसंपर्क मंत्री हुआ करती थीं लेकिन जब तेलंगाना राज्य बना तो उन्हें मंत्री नहीं बनाया गया. यह एक साधारण सी सियासी बात है जिसे ले कर अरुणा सीधे सुप्रीम कोर्ट जा पहुंचीं और एक जनहित याचिका खुद के मंत्री न बनाए जाने पर दायर कर दी. उन की वकील मीनाक्षी अरोड़ा ने दलील यह दी कि तेलंगाना सहित उत्तर प्रदेश, दिल्ली, पंजाब, नागालैंड और मिजोरम में सरकारें समानता के अधिकार का पालन नहीं कर रही हैं. इस अद्भुत याचिका और तर्क पर सुप्रीम कोर्ट का हैरान हो जाना स्वाभाविक था. वजह न्यायपालिका, विधायिका और कार्यपालिका के कामों व अधिकारों के बारे में हर कोई जानता है, इसलिए बड़ी शिष्टता व सभ्यता से यह याचिका जनहित में ही खारिज कर दी गई. वहीं, अदालत ने यह कहते मलहम लगा दिया कि अदालत विधायिका पर ऐसे दबाव नहीं डाल सकती. ऐसी मांग उठाने के और भी मंच हैं, अब अरुणा जो चाहें मंच चुन लें.
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किस का बजाज
देश के शीर्ष उद्योगपतियों में शुमार सांसद राहुल बजाज ने बड़ी दिलचस्प बातें बीते दिनों कहीं. वे भाजपा और कांग्रेस दोनों दलों के साथ हैं लेकिन कह वही रहे हैं जो बाकी सभी लोग कह रहे हैं. लाल बुझक्कड़ शैली में एक पहेली का समापन करते राहुल बजाज ने वह रहस्य खोला जो पहले से ही खुला पड़ा था कि पिछले साल ऐतिहासिक जीत हासिल करने वाली सरकार अपनी चमक खो रही है. सरकार यानी नरेंद्र मोदी और राहुल बजाज यानी उद्योग जगत, जिस के इशारों पर सरकारें बनती और गिरती हैं. अब इस उद्योग जगत ने एक चर्चा पर हां की मुहर लगा दी तो धड़ल्ले से कसबाई स्तर तक के सर्वे आने लगे कि नहीं, अभी ऐसा कहना जल्दबाजी होगी. नरेंद्र मोदी को और वक्त दिया जाना चाहिए. तय है इस धुंधलाती चमक के बारे में मध्यवर्गीय राय ज्यादा माने रखती है जो इतनी जल्दी अपने फैसले पर पछताना नहीं चाहता.