मेरी मौसीजी, जो लखनऊ में रहती हैं, पहली बार दिल्ली गईं. उन्होंने मैट्रो ट्रेन के बारे में बहुत सुन रखा था. उन्होंने मैट्रो में घूमने की इच्छा जाहिर की तो हम ने मैट्रो से ही घूमने का प्रोग्राम बनाया. हम 7-8 लोग थे. सभी एक मैट्रो स्टेशन पहुंचे. मौसीजी मैट्रो स्टेशन पर सारी सुविधाएं देखने लगीं. उन्होंने सोचा था कि अन्य रेलवे स्टेशनों की तरह यहां भी ट्रेन के आने की घोषणा की जाएगी. प्लेटफौर् पर जैसे ही ट्रेन आई हम सब तो जल्दी से चढ़ गए पर आपस में बातें करते हुए किसी का ध्यान मौसीजी की तरफ नहीं गया. उधर मौसीजी भी अपनेआप में ही खोई थीं. जब तक उन्होंने देखा तब तक मैट्रो के गेट बंद हो गए और वे व उन का 6 साल का बेटा वहीं खड़े रह गए.

वह तो एक मैट्रो अधिकारी ने उन की परेशानी जान ली और हम लोगों को फोन कर के दूसरे स्टेशन पर उतरने को कहा. मौसीजी का मोबाइल हम लोगों के पास था. वे सज्जन खुद मौसीजी को दूसरे स्टेशन तक छोड़ने आए. हमें दिल्ली मैट्रो के स्टाफ की ऐसी मदद करने की तत्परता देख कर बहुत खुशी हुई. उस अधिकारी ने रास्ते भर मौसीजी को मैट्रो में चढ़ने व उतरने के बारे में समझाया. हम ने उन्हें दिल से धन्यवाद दिया.   

मीरा शर्मा, झांसी (उ.प्र.)

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बात दिसंबर 1991 की है. उस समय आगरा में चारों ओर दंगा फैला हुआ था, जिस के कारण शहर में कर्फ्यू लगा दिया गया था. सड़कों पर वाहन देखते ही दंगाई हमला करने को दौड़ पड़ते. मेरी भाभी उस समय गर्भवती थीं. भय और चिंता के कारण अचानक उन की तबीयत खराब होने लगी और उन्हें प्रसव पीड़ा शुरू हो गई. लिहाजा, उन्हें तत्काल अस्पताल पहुंचाने का प्रबंध करना पड़ा. कर्फ्यू के कारण कोई भी टैक्सी ड्राइवर कहीं भी जाने को तैयार नहीं हो रहा था. तभी मैं ने एक उम्रदराज सरदार ड्राइवर को अपनी परेशानी से अवगत कराया तो वे सहर्ष भाभी को अस्पताल ले जाने के लिए तैयार हो गए.

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