गरमी की छुट्टियों में मैं अपने पीहर जबलपुर गई हुई थी. वहां मेरी 5 वर्षीया भतीजी देशना अपनी हाजिरजवाबी से सब का मन बहलाए रखती. एक दिन नाश्ते में हम सब चायनीज स्प्रिंग रोल खा रहे थे. मेरे भाई ने देशना को बुलाते हुए कहा कि आ कर स्प्रिंग रोल खा लो. वह ठुमकती हुई आई और ध्यान से देखती हुई बोली, ‘‘क्या इन में स्ंिप्रग लगी हुई है? ये मेरे पेट में उछलेंगे, इसलिए मैं नहीं खाती.’’

उस की भोली बातें सुन कर हम सब ठहाका लगा कर हंस पड़े.

वंदना कासलीवाल

*

मेरी परिचिता का 7 वर्षीय पुत्र मेहुल बहुत चंचल व शरारती है, लेकिन पढ़ने में तेज भी है. इस वर्ष वह परीक्षा में हमेशा की तरह प्रथम नहीं आया तो मुझे आश्चर्य हुआ. मुलाकात होने पर मैं ने उस से प्यार से कहा, ‘‘मेहुल, तुम स्कूल के सामने रहते हो, इसलिए तुम्हारा रिजल्ट अच्छा आना चाहिए.’’ तब उस ने बड़े भोलेपन से कहा, ‘‘हां, लेकिन मेरे घर के सामने मेरा नहीं, लड़कियों का स्कूल है.’’ यह सुन कर मैं हंस पड़ी. 

गीता गुप्त

*

मैं अपनी 7 वर्षीया पुत्री अनुष्का को पढ़ा रहा था. वह सभी सवालों के सटीक जवाब दे रही थी. उस के कोर्स का कोई ऐसा प्रश्न नहीं था जो उसे न आता हो. मैं ने पास बैठी अपनी पत्नी से कहा, ‘‘क्या पढ़ाएं इसे? इसे तो सब आता है.’’

पत्नी ने कहा, ‘‘इस को कुछ ऐक्स्ट्रा पढ़ाओ.’’

इतने में बेटी ने तुरंत कहा, ‘‘मम्मी, मुझे तो ऐक्स्ट्रा भी आता है. बोलूं- ई एक्स टी आर ए.’’

हम सभी उस की मासूमियत पर हंस पड़े.     

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