आटो वाले को पैसे दे कर जैसे ही मैं भैयाभाभी के घर की ओर मुड़ी मोटरसाइकिल सवार झपट्टा मार कर मेरा वह नया कीमती हार ले उड़े जिस के मिलने की खुशी शेयर करने के लिए मैं भाभीभैया के घर आई थी. मैं सन्न रह गई. अंधेरे के चलते बाइक का नंबर नहीं पढ़ा जा सका. जैसेतैसे 100 नंबर पर फोन घुमा कर सारा माजरा बता दिया. प्रमोशन की खुशी में दिन में पति महोदय द्वारा अपने हाथों से पहनाए गए खूबसूरत हार से मैं वंचित हो गई.

हार का उपहार देने के बाद पति का डिनर पर बाहर चलने का प्रस्ताव था. किंतु मैं ने इन्हें आज की शाम भैया के घर बिताने के लिए मना लिया था.

भैयाभाभी मुझे समझाबुझा कर दिलासा दे रहे थे. लेकिन मैं तो मानो अपराधबोध से दबी जा रही थी. इन्हें फोन से सूचित किया जा चुका था. मैं इन की प्रतिक्रिया के बारे में तरहतरह के कयास लगा रही थी. तभी ये आ पहुंचे और बोले, ‘‘सब से पहले तो यह बताइए कि झीनाझपटी में चेहरे या गले पर कोई चोटखरोंच तो नहीं आई.’’ मेरे भीतर आश्चर्यमिश्रित खुशी कौंध गई. मैं ने आंखों ही आंखों में इन की यह शंका दूर कर दी तो बोले, ‘‘फिर कोई चिंता नहीं. अफसोस किस बात का? हजार हार कुरबान हैं आप पर. जल्दी ही दूसरा हार आ जाएगा.’’ फिर सब की ओर मुखातिब होते हुए बोले, ‘‘आप हमारे प्रमोशन की खुशी में डिनर पर चलने के लिए तैयार हो जाइए. जल्दी कीजिए.’’ बोझिल वातावरण हलका हो गया. इन की जिंदादिली देख कर मुझे बेइंतहा खुशी हुई जो जीवनभर की मुसकान बन गई है.

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