एक बार हम सब बैठ कर यह बात कर रहे थे कि किस में कितने ग्राम खून है. तभी दादी तपाक से बोलीं, ‘‘मैं ने कभी चैक तो नहीं करवाया है पर अब तो सिर्फ 100 ग्राम ही खून बचा होगा.’’  दादी के इतना कहते ही हम सब हंसतेहंसते लोटपोट हो गए.

आरती, भिवानी (हरियाणा)

 

कुछ दिन पहले हमारे एक परिचित अपनी बेटी, जिसे वे प्यार से टुकटुक कहते हैं, के साथ श्रीलंका घूमने गए. घूमतेघूमते टुकटुक एक दिन उन से आगे निकल गई. उस की मम्मी ने आवाज लगाई, ‘‘टुकटुक, रुक जा.’’ इतने में एक थ्रीव्हीलर उन के पास आ कर रुक गया और चालक ने उन से पूछा कि आप को कहां जाना है? उन्होंने कहा कि हम तो अपनी बेटी को बुला रहे थे. दरअसल, वहां थ्रीव्हीलर को टुकटुक कहते हैं.

निर्मलकांता गुप्ता, कुरुक्षेत्र (हरियाणा)

 

बात बहुत पुरानी है. उस वक्त परिवार में बहुएं साड़ी ही पहना करती थीं. बड़ों के सामने सलवारसूट नहीं पहना जाता था. हमारे घर में जेठजी के बेटे की शादी हुई तो बहूरानी आई. जैसा कि आजकल चलन है, बच्चे साड़ी न पहन कर सूट या अन्य कुछ पोशाक पहनना पसंद करते हैं, वह भी सलवारसूट पहना करती थी. यह पहनावा मेरी सास को पसंद नहीं आता था.उस समय हम ग्वालियर में थे. मेरी सास कभीकभी हमारे पास आया करती थीं. वे जेठजी के साथ बुलंदशहर में रहा करती थीं. एक दिन जब मेरे दोनों बच्चे भी मेरे पास बैठे थे, वे बोलीं, ‘‘बहू ऐसे कपड़े पहनती है, अच्छा नहीं लगता, कोई क्या कहेगा.’’ मेरे मुंह से निकला, ‘‘बेटी भी पहनती है, उस ने पहन लिए तो क्या हुआ, साड़ी में बंधन लगता होगा.’’

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