मैं और मेरे पति लुधियाना गए. हम ने बसस्टैंड से आटोरिकशा किया. रास्ते में एक जगह से आटो वाले ने एक महिला सवारी को लिया जिस की गोद में एक दुधमुंहा बच्चा था. उस औरत ने शौल ओढ़ रखी थी. फरवरी का महीना था, ठंड कड़ाके की थी. हम जब अपने गंतव्य पर पहुंचे, आटो वाला भाड़ा ले कर आगे बढ़ गया.
हमें कुछ सामान खरीदना था. मेरे पति ने कमीज की जेब में हाथ डाला तो अचंभित रह गए. कागजों की पर्र्तों में लिपटे 2 हजार रुपए के तीनों नोट गायब, जबकि कागज सहीसलामत थे. वह शातिर औरत न जाने कब जेब पर हाथ साफ कर गई.
यकीन ही नहीं होता कि कोई ऐसे भी आंखों में धूल झोंक सकता है. पुलिस में रिपोर्ट लिखाते भी तो किस की? न आटो का पता न उस औरत का. बाद में पता चला कि ऐसी औरतों के संग कुछ आटो वालों ने गैंग बनाए हुए हैं.
कुलविंदर कौर वालिया
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मेरे भैया की मेन मार्केट में गिफ्ट की दुकान है. जिसे भैया और भाभी दोनों संभालते हैं. एक दिन भैया दुकान पर नहीं थे. भाभी दुकान पर आईं और अपना पर्स काउंटर के पास रखे छोटे स्टूल पर रख दिया. तभी शौल पहने हुए 3 औरतें आईं. उन में से एक औरत भाभी को नमस्ते कह कर कहने लगी, ‘‘हम लोग गांव के हैं. मेरी बेटी का रिश्ता शहर में हुआ है. आज मेरे दामाद का जन्मदिन है. आप कुछ अच्छा और सस्ता उपहार दिखा दें.’’
दुकान पर थोड़ी भीड़ होने के कारण भाभी ने कहा, ‘‘5 मिनट रुको, यह लड़का तुम्हें दिखा देगा.’’
इस पर वह औरत कहने लगी, ‘‘दीदी, बुरा मत मानना, हमें लड़कों पर विश्वास नहीं है. आप पढ़ीलिखी, समझदार लगती हो. लेनदेन की आप को समझ है. आप अपनी पसंद से कुछ अच्छा दिखा दो.’’
मेरी भाभी ने कुरसी से उठ कर थोड़ा आगे जा कर एक फोटोफ्रेम दिखाया. उस औरत को गरीब जान कर उस से 300 रुपए देने को कहा.
उस औरत ने जल्दी से रुपए काउंटर पर रखे और फोटोफ्रेम का डब्बा ले कर तीनों औरतें जाने लगीं.
‘‘अरे, इसे पैक तो करवा लो,’’ भाभी ने उन्हें जाते हुए देख कर कहा.
‘‘नहींनहीं, हमें जल्दी है,’’ यह कहते हुए वे औरतें दुकान के पास खड़े आटोरिकशा में बैठ कर चली गईं.
थोड़ी देर में मेरी भाभी कुछ समान निकालने के लिए पर्स ढूंढ़ने लगी तो वह नहीं मिला. पर्स चोरी हो गया था. उस पर्स में 5 हजार रुपए, मोबाइल, घर की चाबी के अलावा अलमारी की चाबियां और कुछ जरूरी कागजात थे.
दीपा गुलाटी