सरकारी कार्य के सिलसिले में मैं भोपाल से दिल्ली गया था. मेरे साथ एक अधिकारी और थे. वरिष्ठ अधिवक्ता के साथ पटियाला हाउस में कौन्फ्रैंस थी. हम लोगों ने जीपीओ कश्मीरी गेट से पटियाला हाउस औटो से यात्रा की. वरिष्ठ अधिवक्ता महोदय उच्चतम न्यायालय में दिनभर व्यस्त रहे, सो समय नहीं दे पाए. उन्होंने अपने नोएडा स्थित निवास पर मिलने के लिए अगले दिन बुलाया. जीपीओ कश्मीरी गेट से कश्मीरी गेट मैट्रो स्टेशन की दूरी बस से मात्र एक स्टेशन की थी. हम दोनों बस में सवार हो लिए.

मैं जैसे ही सीट पर बैठने के लिए आगे बढ़ने लगा, एक युवक मेरे सामने रास्ता रोक कर खड़ा हो गया और मुझे आगे बढ़ने से रोकता हुआ पीछे की ओर धकेलने लगा. मैं ने कहा कि भाई, सामने से हटो, आगे सीट खाली है, मुझे आगे जाने दो. तो वह बड़े ही सामान्य व्यवहार से मुसकराते हुए कहता है कि अंकल, टिकट तो ले लेने दो. मैं ने उस के इस व्यवहार को सामान्य समझा और थोड़ा पीछे हुआ. उसी समय मुझे 3 युवकों ने 3 तरफ धक्का दिया. जैसे ही मुझे धक्के का एहसास हुआ, मैं ने तुरंत अपने पैंट की पीछे वाली जेब को टटोला. जेब में पर्स था, क्योंकि जेब का बटन बंद था. पर्स उस में से निकालना आसान नहीं था. लेकिन जैसे ही मैं ने दूसरे हाथ से सामने की जेब में रखे मोबाइल को टटोला, मैं सन्न रह गया. जेब खाली थी. तीनों युवक मेरे से दूर हो गए. लो फ्लोर बस थी, चलते ही दरवाजे बंद हो जाते हैं. युवकों को उतरने का मौका नहीं मिला. मैं ने तुरंत पीछे वाले युवक से कहा कि तुम ने मेरा मोबाइल निकाल लिया है, वापस करो. वह युवक चुप रहा. उस के साथी ने सफाई दी कि अभीअभी एक लड़का बस से उतरा है, वही आप का मोबाइल ले कर भागा होगा. मैं ने कहा कि अभी बस से कोई नहीं उतरा है. मेरा मोबाइल सामने वाले युवक, जो मेरे पीछे खड़ा था, उस ने ही निकाला है एवं अपने साथी को दिया है, मेरा मोबाइल वापस कर दो. युवकों की तरफ से कोई जवाब नहीं आया. मैं ने जोर से चिल्ला कर कंडक्टर से कहा कि ‘कंडक्टर, बस को सीधे थाने ले चलो, इन लोगों ने मेरा मोबाइल निकाल लिया है और वापस नहीं दे रहे हैं.’ इतना सुनते ही युवकों में से एक युवक ने काले रंग का एक स्मार्ट फोन दिखाया कि क्या यह है. मैं ने कहा, ‘नहीं.’

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